फ़रवरी 12, 2012

राजनीति की ‘डर्टी पिक्चर’


किसी देश की राजनीति ही उस देश का भविष्य तय करती है। जिसकी दिशा-धारा तय होती है, संसद, विधानसभा और विधान परिषदों में। इसीलिए इन्हें राजनीति का मंदिर माना जाता है। देश के कर्णधारों का भविष्य भी इन्हीं मंदिरों में तय होता है। लेकिन इन मंदिरों में यदि कोई गंदगी फैलाई जाने लगे तो इन मंदिरों का संरक्षण और इनमें पूजा करने वाली जनता की नाराजगी जायज है। हमारे देश के ये मंदिर पहले से ही नोट कांड, गाली-गलौज, मारपीट और सोने वाले नेताओं के नाम पर बदनाम थे, इसमें एक काला अध्याय और जुड़ा कर्नाटक विधान सभा में हुए मोबाइल पोर्न वीडियो कांड के बाद। लेकिन सत्ता कितनी बेहया हो चुकी है यह कांड तो मात्र इसकी बानगी भर है। इस कांड के बाद राजनीति का जो चेहरा जनता के सामने आया है वो सच में डराने वाला है।
कर्नाटक विधान सभा की कार्यवाही के दौरान वहां की वर्तमान सरकार के दो मंत्री मोबाइल फोन पर अश्लील फिल्म देखते पाए गए। उनकी इस हरकत को आज के सचेत मीडिया ने सार्वजनिक कर दिया। भारत के संसदीय इतिहास में यह पहली ऐसी घटना थी, जो खुद भी इतिहास का एक काला पन्ना बन गई। इनमें से एक थे सहकारिता मंत्री लक्ष्मण सावदी और महिला और बाल विकास मंत्री सीसी पाटिल। अब सोचने वाली बात यह है कि जिन मंत्री महोदय पर महिलाओं के विकास का जिम्मा है अगर वो राजनीति के मंदिर में बैठकर इस तरह की हरकत करें। तो वे महिलाओं और देश का भविष्य बच्चों का किस तरह का विकास करेंगे। बात जब जनता के समाने आ गई तो इन दोनों नेताओं ने इस्तीफा दे दिया। परंतु देश की अस्मिता पर ये राजनेता काला तिलक लगा गए। इससे एक दो-दिन पहले ही कर्नाटक में ही सरकारी रेव पार्टी में खुलेआम सेक्स की बात भी मीडिया की सुर्खियां रही थीं। इस पूरे कांड के बाद हम यही कह सकते हैं कि भारतीय राजनीति आत्महंता प्रवृत्ति की ओर बढ़ रही है। जनता पहले से ही भ्रष्टाचार, मंहगाई और सियासती दांवपेंच से परेशान थी, ऊपर नेताओं की हरकत ने राजनीति की मर्यादा को तार-तार कर दिया। भारत में कई ऐसे जननेता हैं जो दिन भर जनता के हितैषी होने की बात करते हैं और रात होते ही शराब और शबाब के नशे में डूब जाते हैं। हाल ही में हुए ‘भंवरी देवी कांड’ ने राजनीति के विभत्स चेहरे को जनता के सामने लाने का काम किया था। इससे पहले ‘मधुमिता कांड’, कश्मीर सेक्स स्कैंडल, तंदूर कांड कई ऐसे मामले जिनमें भारतीय राजनीति कीचड़ में सनी दिखाई देती है।
कर्नाटक के कंलक का रोना रोने से कुछ सधने वाला नहीं है। वर्तमान में देश का हर राज्य किसी न किसी रूप में इस अत्याचार का शिकार है। कभी हमने सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है? शायद नहीं! इसका कारण भी हम सब ही हैं। हम बार-बार उन्हीं को चुनते हैं जो हमारे लिए और समाज के लिए खतरा हैं। उन्हीं की सरकार हमें सुहाती है जिनके शासन में अपराध, भ्रष्टाचार चरम पर रहा। इस पर हम यह बहाना कर सकते हैं कि हम करें भी तो क्या, विकल्प ही नहीं है हमारे पास। अब यह बहाना नहीं चलने वाला, जिस तरह हम सबने भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुटता का संदेश संपूर्ण विश्व को दिया, उसी तरह इस कलंकित राजनीति के खिलाफ भी लामबंद होना पड़ेगा। हमारा देश 65 फीसदी युवाओं का देश है। युवाओं को ही संभालनी होगी, राजनीति की बागडोर अपने हाथ में। यह हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने का समय कदापि नहीं है। हमें जागना होगा और दूसरों को जगाने के लिए प्रयास करना होगा। भारतीय राजनीति का चारित्रिक पतन ही सभी समस्याओं का मूल है। हमें बचाना होगा अपने देश के चारत्रिक गौरव को जिसके बलबूते हम सोने की चिडि़या कहलाते थे। सर्वथा उपयुक्त समय है उठ खड़े हो जाएं, अपने मूल्यों की रक्षा के लिए, तभी हम सबका भाग्य उदय हो सकता है।
यह लेख दैनिक भास्‍कर, नोएडा के संपादकीय पृष्‍ठ पर 10 फरवरी को प्रकाशित हुआ है।

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