
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। पतझड़ और इसके बाद आने वाला वसंत इसी का प्रतीक है। वसंत संचार का नाम है। वसंत के माध्यम से कुछ नया करने का संदेश मिलता है। प्रकृति नए परिधान ओढ़ लेती है, नए पुष्पों से धरा सुशोभित होती है। ऐसा लगता है चारों तरफ से प्रकृति की सुंदरता हेमंत की ठिठुरन के बाद बाहर निकलकर आ गई है। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं- वसंत ऋतुनाम कुसुमाकरः, ऋतुओं में मैं कुसुमाकर अर्थात् वसंत के रूप में हूं।
इसके अलावा वसंत समर्पित है विद्या की देवी सरस्वती के नाम। इसलिए माघ शुक्ल पंचमी को हम वसंत पंचमी के रूप में मानते है। इस दिन हम ऋतुराज वसंत का स्वागत भी करते हैं। इसे ज्ञान पंचमी और श्री पंचमी आदि नामों से भी जाना जाता है। वसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती के प्रकाट्य उत्सव के रूप में सम्पूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है। इसे विद्या की जयंती नाम से भी पुकारा जाता है।
प्राकटयेनसरस्वत्यावसंत पंचमी तिथौ। विद्या जयंती सा तेन लोके सर्वत्र कथ्यते।।
सनातन धर्म की अपनी अलग विशेषताएं हैं, इसलिए यहां हर दिन त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। शायद इसीलिए इसको संसार में उच्च स्थान प्राप्त है। इसी क्रम में आता है वसंत पंचमी का पर्व। माता सरस्वती विद्याल और बुद्धि की अधिष्ठात्री हैं। उनके हाथ की पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। उनके कर कमलों की वीणा हमें संदेश देती है कि वसंत के आगमन के साथ ही हम अपने हृदय के तारों को झंकृत करें। माता सरस्वती का वाहन मयूर हमें सिखाता है कि हम मृदुभाषी बनें। अगर हम सरस्वती अर्थात् विद्या के वाहन बनाना चाहते हैं तो हमें अपने आचरण, अपने व्यवहार में मयूर जैसी सुंदरता लानी होगी। इस दिन उनकी पूर्ण मनोभाव से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। हमें स्वयं और दूसरों के विकास की प्रेरणा लेनी चाहिए। इस दिन हमें अपने भविष्य की रणनीति माता सरस्वती के श्री चरणों में बैठकर निर्धारित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त अपने दोष, दुर्गुणों का परित्याग कर अच्छे मार्ग का अनुगमन कर सकते हैं। जिस मार्ग पर चलकर हमें शांति और सुकून प्राप्त हो। मां सरस्वती हमें प्रेरणा देती हैं श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की। इस दिन हम पीले वस्त्र धारण करते हैं, पीले अन्न खाते हैं, हल्दी से पूजन करते हैं। पीला रंग प्रतीक है समृद्धि का। इस कारण वसंत पंचमी हम सबको समृद्धि के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
वसंत पंचमी वास्तव में मानसिक उल्लास का और आंतरिक आह्लाद के भावों को व्यक्त करने वाला पर्व है। यह पर्व सौंदर्य विकास और मन की उमंगों में वृद्धि करने वाला माना जाता है। वसंत ऋतु में मनुष्य ही नहीं जड़ और चेतन प्रकृति भी श्रृंगार करने लगती है। प्रकृति का हर परिवर्तन मनुष्य के जीवन में परिवर्तन अवश्य लाता है। इन परिवर्तनों को यदि समझ लिया जाए तो जीवन का पथ सहज और सुगम हो जाता है। वसंत के मर्म को समझें, वसंत वास्तव में आंतरिक उल्लास का पर्व है। वसंत से सीख लें और मन की जकड़न को दूर करते हुए, सुखी जीवन का आरंभ आज और अभी से करें।
दैनिक भास्कर नोएडा, यूपी एडीशन में वसंत पर्व के दिन पृष्ठ 6 पर प्रकाशित हुआ है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें