सितंबर 08, 2011

कब सबक लेंगे देश चलाने वाले





जो घर से निकले थे कुछ अरमान लिए,
वो वापस न लौटें तो कैसा लगे,
ये तो उस मां से पूछो जो
अपने दिल के टुकड़े की याद में
हर पल जगे।
7 सितंबर को दिल्‍ली हाईकोर्ट में हुए बम धमाकों में 11 लोगों की जान चली यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है। इस आतंकी तबाही में 76 लोग घायल हुए जबकि 15 लोगों की हालात गंभीर बनी हुई है। बुधवार को हाईकोर्ट के गेट नम्‍बर 5 के पास सुबह 10 बजकर 14 मिनट पर हुए इस शक्तिशाली विस्‍फोट ने पूरे देश को एक बार फिर सचेत कर दिया कि वह सुरक्षित नहीं है। इससे पहले 25 मई को भी यहां धमाका हुआ था।
       बुधवार को हुए विस्‍फोट की आवाज 1.5 किमी तक सुनाई दी। इसकी तीव्रता 100 किमी प्रति घंटा थी। इस विस्‍फोट में 40 मीटर के दायरे में मौजूद लोग हताहत हुए। बताया जाता है कि दिल्‍ली हाईकोर्ट में हर रोज लगभग 5000 लोग आते हैं। इन सबको उम्‍मीद होती है शाम तक घर लौटेंगे। अपने मां-बाप के पास, अपनी पत्‍नी–बच्‍चों के पास अपने परिवार के पास। लेकिन बुधवार को 10 बजे जो भी हाईकोर्ट के गेट नम्‍बर 5 पर गया वह इस हादसे का शिकार हो गया। सरकार की ओर से मृतकों के करीबियों को 4-4 लाख, स्‍थाई तौर पर विकलांग हुए लोगों के लिए दो-दो लाख, गंभीर रुप से घायल लोगों को एक-एक लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की। इसके अलावा धमाके की चपेट में आए नाबालिगों को डेढ़-डेढ़ लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की जो लोग मामूली तौर पर घायल हुए उन्‍हें दस-दस हजार रुपए दिए जाने की घोषणा की गई।
धमाके कहां-कहां
25 मई 2011, कोई हताहत नहीं
19 सितंबर 2010 जामा मस्जिद कोइ्र हताहत नहीं
13 सितंबर 2008 करोल बाग, ग्रेटर कैलाश और कनॉट प्‍लेस 26 लोगों की मौत, 123 घायल
27 सितंबर 2008 महरैली 3 की मौत, 30 घायल
29 अक्‍टूबर 2005 सरोजनी नगर, गोविंदपुरी, पहाड़गंज 67 लोगों की मौत, 218 घायल
13 दिसंबर 2011 संसद भवन, 11 लोगों की मौत, 30 घायल
       
 हर बार धमाके होते हैं। मुआवजे की घोषणाएं होती हैं और फिर होता है एक धमाका। सब कुछ मिटा देने के लिए। क्‍या हम यूं हर बार, वार सहते रहेंगे। चुप बैठे र‍हेंगे। सरकार क्‍यूं नहीं जागती। जांच होती, विपक्ष राजनीतिक पैंतरे बाजी करता है। इसके बाद भी नतीजा क्‍या जीरो।
अब प्रश्‍न यह उठता है कि हमारे सुरक्षा खेमे में कहां कमी है, जिससे प्रवेश पाकर आतंकी आते हैं और हमें अपना निशाना बनाते हैं। सुरक्षा पर जो अरबों रुपया बहाया जाता है उसका उपयोग क्‍या केवल माननीयों की सुरक्षा में होता है। कहीं न कहीं तो कोई कमी। जरुर ही कहीं सांप आस्‍तीन में ही छुपे हैं। उन्‍हें खोज कर मार देना बेहतर है या हर बार हादसे सहना। देश को चलाने वालों से मेरी गुजारिश कि सिर्फ मुआवजे की घोषणा करने से किसी की जान की कीमत अदा नहीं की जा सकती। समाधान की राह खोजो अगर यूं ही जानें जाती रहीं तो………..
हर बार हम ही शिकार होते हैं,
हम पर ही छुप-छुपकर वार होते हैं।
आपको क्‍या आप तो बुलेट प्रूफ में रहते हैं,
और महलों में सोते हैं।