शोधकर्ता: डॉ. निर्मलमणि अधिकारी,
काठमांडू विश्वविद्यालय, नेपाल
nirmalam.adhikary@gmail.com
अनुवादकर्ता: आदित्य कुमार शुक्ला,
एमिटी विश्वविद्यालय मध्यप्रदेश,
ग्वालियर,
भारत
संचार का साधारणीकरण प्रारूप, संचार प्रक्रिया के हिन्दू दृष्टिकोण का निरूपण है। इसमें पारस्परिक संचारकों के बीच समझ, समानता या सामंजस्य प्राप्त करने की प्रक्रिया के आरेखकीय रूप का व्यवस्थित विवरण प्रस्तुत किया गया है। यह प्रारूप बताता है कि कैसे संचार करने वाले लोग साधारणीकरण की प्रक्रिया में सहृदयता की स्थिति को प्राप्त करने के लिए बातचीत करते हैं। सहृदयता वह मुख्य अवधारणा है जिसमें साधारणीकरण का अर्थ निहित है। सहृदयता—समन्वय, समानता, आपसी समझ और एकता की स्थिति है। साधारणीकरण प्रक्रिया की पूर्णता के दौरान संचारक सहृदय अवस्था को प्राप्त करते हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि संचार की साधारणीकरण प्रक्रिया संचार में समअवस्था के भाव को अभिप्रेरित करती है।
भरतमुनि का नाट्यशास्त्र और भृतहरि का वाक्यपदीय इस प्रारूप के दो मुख्य स्रोत हैं। संस्कृत काव्य, सौंदर्यशास्त्र और भाषाविज्ञान और हिंदू धार्मिक-दार्शनिक ज्ञान प्रणालियों के अन्य विषयों में स्थापित औपचारिक स्थाई अवधारणाओं जैसे, साधारणीकरण, सहृदयता, रसास्वादन, साक्षात्कार आदि को इस संचार प्रारूप में प्रयुक्त किया गया है। यह सभी अवधारणायें साधारणीकरण संचार प्रारूप के स्थापना में नींव की तरह उपयोग में लायी गई हैं।
संक्षेप में, निम्नलिखित बिंदु साधारणीकरण संचार प्रारूप की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं:
- इस संचार प्रारूप की संचरना अरेखीय है। यह संचार की द्विपक्षीय अवधारणा को प्रकट करता है। जिसके परिणामस्वरूप संचारकों के बीच आपसी समझ का विकास होता है। इस तरह यह संचार प्रारूप संचार के रैखिक प्रारूपों की सीमाओं से मुक्त है।
- यह संचार प्रारूप बताता कि विभिन्न जातियों, भाषाओं, संस्कृतियों और धार्मिक प्रथाओं के जटिल प्रचलित पदानुक्रम के बावजूद हिंदू समाज में किस तरह सफल संचार को संभव बनाया जा सकता है। हिंदू समाज की जटिलता के बीच सहृदयता, एक—दूसरे से संपर्क बनाने में मदद करती है और संचार की आसान प्रक्रिया स्थापित होती है।
- साधारणीकरण प्रक्रिया के दौरान संचारकों के बीच आपसी संबंध बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए, जैसे गुरु-शिष्य संबंध हमेशा अपने आप में पवित्र माना जाता है। उसी प्रकार इस प्रक्रिया में सम्बन्धों का कारण नहीं, बल्कि संबंध स्वयं में महत्वपूर्ण है। पश्चिम के अधिकांश संचार सिद्धांतों और प्रारूपों में जिस प्रकार प्रेषक के प्रभुत्व पर जोर दिया जाता है। उससे अलग यह संचार प्रारूप , संचारकों को समान महत्व देता है।
- प्रारूप इंगित करता है की अभिव्यंजना (संकेतीकरण या एन्कोडिंग) एवं रसास्वादन (डीकोडिंग) संचार की मौलिक गतिविधियां हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह दोनों साधारणीकरण (संचार) के निर्णायक संधि बिंदु हैं।
- यह प्रारूप प्रदर्शित करता है कि संचार का हिंदू परिप्रेक्ष्य आंतरिक या अंतःक्रियात्मक गतिविधि पर अधिक बल देता है। उदाहरण के लिए, एन्कोडिंग और डिकोडिंग की प्रक्रियायें अपने आदर्श रूप में चार-स्तरीय तंत्र स्थापित करती हैं। यहाँ संचार में संवेदी अंगों का उद्देश्य तर्कसंगतता की तुलना में अनुभव पर अधिक से अधिक ज़ोर देना है।
- साधारणीकरण प्रारूप स्पष्ट करता है कि किस तरह ग्राहक द्वारा प्रेषक की पहचान न होने पर भी संदर्भानुसार (प्रसंगानुसार) संदेश को अर्थ प्रदान किया जा सकता है। इस तरह वक्ता के दिमाग में चल रहे वास्तविक इरादों को जाने बिना, केवल संदर्भ और प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखते हुए संदेश का प्रायोजित अर्थ निर्धारित किया जा सकता है।
- संचार का साधारणीकरण प्रारूप बताता है कि हिंदू परिप्रेक्ष्य में संचार का दायरा बहुत ही व्यापक है। जैसा कि प्रारूप के माध्यम से समझा जा सकता है कि जीवन के सभी तीन आयामों अधिभौतिक (भौतिक या सांसारिक), अधिदैविक (मानसिक) तथा आध्यात्मिक (आत्मिक) को समझने के लिए संचार ही सर्वांगीण है। सामाजिक या सांसारिक संदर्भ में संचार ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आदर्श परिस्थितियों में, मनुष्य साहृदयता को प्राप्त करते हैं। मानसिक संदर्भ में संचार द्वारा यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने तथा आपसी समझ को अनुभव किया जा सकता है। इसके साथ—साथ संचार के आध्यात्मिक आयाम भी हैं।
- इस प्रारूप के अनुसार संचार का उद्देश्य समानता और आपसी समझ की प्राप्ति करना है। लेकिन यह लक्ष्य केवल यहीं तक सीमित नहीं है। जैसे कि वैदिक हिंदू आवधारणा पुरूषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जोकि मानवीय जीवन के चार लक्ष्य हैं) को प्राप्त करने पर बल देती है उसी प्रकार यह संचार प्रारूप कहता है संचार के माध्यम से इन चारों लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह यह संचार प्रारूप वैदिक हिंदू दर्शन के वैश्विक दृष्टिकोण के अनुरूप है।
एक आवधारणा/सिद्धांत के रूप में साधारणीकरण को संचार के साधारणीकरण प्रारूप से अलग देखना चाहिए। साधारणीकरण सिद्धांत संस्कृत काव्य और अन्य विषयों में स्थापित महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है। जिसका आधार भरतमुनि का नाट्यशास्त्र
है और जिसे भट्टनायक के साथ पहचान मिली। जबकि संचार का साधारणीकरण प्रारूप
साधारणीकरण सिद्धांत के साथ—साथ कुछ अन्य संसाधनों के माध्यम से संचार के
हिंदू दृष्टिकोण को परिभाषित करने के लिए सर्वप्रथम 2003 विकसित और प्रस्तावित किया गया।
इस प्रारूप की मेटा—सैद्धांतिक धारणा
वैदांतिक है। हिंदू आवधारणा के अनुसार संचार करने का तरीका निश्चित रूप से आंतरिक
या अंतरात्मात्मक गतिविधि पर बल देता है। यहां यह समझने योग्य है कि अभिव्यंजना और
रसास्वादन, संचार की आधारभूत गतिविधियां है और हिंदू
आवधारणात्मक जीवन में संचार का उद्देश्य तर्कसंगतता की तुलना में संवेदी अंगों के
माध्यम से अधिक से अधिक अनुभव हासिल करना है। यह प्रवृत्ति सहृदयता और अन्य
अवधारणाओं को व्यावहारिक रूप से अनुभव करने में सहायता करती है। इस प्रकार संचार
का अंतिम परिणाम हिंदू समाज में समन्वय के रूप में प्राप्त होता है।
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