सुबह-सुबह
गंगा की सैर से लौटते समय एक बूढ़े चाय वाले की दुकान पर रूककर सोचा कि क्यों न
चाय की चुस्कियों का लुत्फ उठाया जाये। लेकिन एक दृश्य देखकर अचंभित हो गया, चाय
वाला लकड़ी जलाकर चाय बनाने का प्रयास कर रहा था। जो कभी एलपीजी की मौजूदगी में त्वरित
गति से चाय बनाकर अपने ग्राहकों की सेवा किया करता था। इस व्यथा का कारण पूछने पर
वह बोल पड़ा बेटा इस खोखली राजनीति ने देश का बंटाधार कर दिया। इससे तो अच्छे हम
अंग्रेजों के शासनकाल में थे। वो कम से कम पराया होकर हमें लूटते थे। अब तो हमारे
अपने ही हमें लूटने पर तूले हैं। सत्ता के लिए हर हमारे राजनेता रोज नया ड्रामा
लेकर नचाते-कूदते नज़र आते हैं। देश में बंदरबांट मची है। गैस की सब्सिडी हटा दी
सिलेंडर कहां से लाएं, अभी से ब्लैक में कीमत 1000 के पार चली गई, पहले से ही
मुश्किल से गुजरा होता था। इतने में सब्जी बेचने वाली एक अम्मा जो सब्जी बेचकर
अपने परिवार का पालन पोषण करती थीं, वहां से गुजरी, जो अपना बोरिया-बिस्तरा बांध
कर वापस जा रही थीं, अपने गांव। मैं अक्सर उनसे ही घर के लिए सब्जी खरीदा करता
था। कम पढ़ी-लिखी होने के कारण वो एफडीआई के बारे में तो कम जानती थीं, लेकिन किसी
ने उनको ये समझा दिया था कि विदेशी दुकानें अब अपना विस्तार करेंगी, आप लोगों का
अब कोई काम नहीं बचा। इसलिए दुकान बंद करो और अपने घर लौट जाओ।
मैं
सोच में डूब गया यह व्यथा केवल उस बूढ़े चाय बेचने वाले या बूढ़ी अम्मा की नहीं
है। भारत का हर उस व्यक्ति की है जो किसी तरह अपने लिए दो जून की रोटी की व्यवस्था
कर पाता है। ऐसे में भारत सरकार के इस तरह लिए गए फैसले कितने नीतिगत हैं, आप खुद
ही अनुमान लगा सकते हैं। घोटालों ने तो पहले से ही भारत की कमर तोड़ने में कोई कसर
बाकी नहीं रखी थी। अब तो यह भी शंका उत्पन्न होने लगी है कि मंहगाई और एफडीआई
जैसी चीजें समाने लाकर कहीं जनता का ध्यान बडे़-बड़े घोटालों से बटाने की कोशिश
तो नहीं की जा रही हैं।
2014
का चुनावी माहौल अभी से अपना रंग दिखा रहा है, सरकार का यह बयान कि कांग्रेसी सरकार
वाले राज्यों में 9 सिलेंडर सब्सिडी
के दयारे में आयेंगे। ये कैसा बचपना है, इसे देखकर तो यही लगता है कि पूरे देश की मां
हमारी सरकार बाकी राज्यों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। सवाल यह है कि क्या
जनता केवल कांग्रेसी सरकार वाले राज्यों में ही निवास करती है, बाकी राज्यों में
क्या भूत रहते हैं। खैर जाने दीजिए इन बातों को ममता बनर्जी ने समर्थन तो वापस ले
ही लिया है, अब सरकार का क्या होगा ये वही जाने, लेकिन एक बात तो साफ हो गई,
राजनीति झूठों की बस्ती है। सरकार कह रही है कि ममता जी को सारे निर्णयों के बारे
में बताया गया, लेकिन ममता जी इससे नकार रही हैं। ऐसे में किसको सत्यवादी माना
जाए। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा सुप्रीमो
मुलायम क्या रंग दिखाते हैं। दोनों यूपी में तो एक-दूसरे के धुर विरोधी हैं, क्या
केन्द्र में कांग्रेस के साथ इनका मेल खायेगा। अगर ऐसा होता है तो जनता यही
समझेगी कि ये सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। या फिर सरकार गिरेगी और चुनावों
के बाद फिर से मंहगाई का चाबुक इस देश उस दो तिहाई जनता पर चलेगा, जो अभी से
घोटालों और मंहगाई के वार से पस्त हो चुकी है।
मैं
इसी सोच में डूबा था कि वह गरीब बूढ़ा बड़ी मुश्किल से गरमागरम चाय लेकर आ गया,
मैने चाय का आनंद लिया और अपने घर की ओर आगे बढ़ चला।