मार्च 28, 2018

मीडिया चौपाल से मीडिया महोत्सव : संचारकों के सशक्तिकरण की कवायद

 “मीडिया महोत्सव – 2018” का आयोजन 31 मार्च-01 अप्रैल, 2018 (चैत्र पूर्णिमा- वैशाख कृष्ण प्रथमा, विक्रम संवत 2075) को भोपाल (मध्यप्रदेश, भारत) स्थित ‘मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् परिसर में होगा।

 दो दिवसीय मीडिया महोत्सव 8 सत्रों में संपन्न होगा।  इन सत्रों में भारत की सुरक्षा के विविध आयाम और जनसंचार माध्यमों से सम्बंधित विभिन्न मुद्दों – भारत की सुरक्षा : देश, काल, परिस्थिति के परिप्रेक्ष्य में, साइबर एवं डिजिटल युग में व्यक्ति, परिवार एवं समाज की सुरक्षा सुरक्षा, पांथिक एवं साम्प्रदायिक/मजहबी कट्टरता के दौर में सुरक्षा, भारत की सुरक्षा और मीडिया : अंतर्संबंधों की पड़ताल, भारत की सुरक्षा : राजनीति और मीडिया की नजर में, भारत की सुरक्षा : मीडिया, विज्ञान और टेक्नॉलाजी, सभ्यतागत एवं सांस्कृतिक सुरक्षा की चुनौतियां आदि पर गंभीर विमर्श होगा।  मीडिया क्षेत्र में रूचि रखने वाले विद्यार्थी, अध्येता, अध्यापक, पत्रकार, साहित्यकार, ब्लॉगर, वेब संचालक, लेखक, मीडिया एक्टिविस्ट, संचारक, मत-निर्माता, रंगकर्मी, कला-धर्मी अपना पंजीयन करें और मीडिया महोत्सव में सहभागी हों इसी में हमारे प्रयासों की सार्थकता है।

आयोजन में मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्, निस्केयर (सीएसआईआर), राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, देव संस्कृति विश्वविद्यालय (हरिद्वार), भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय, इंडिया वाटर पोर्टल, विवेकानंद केंद्र (भोपाल), विश्व संवाद केंद्र, जनसंपर्क विभाग (म.प्र. शासन) सहित अनेक शासकीय व स्वैच्छिक संस्थानों की साझेदारी रहेगी। 

भोपाल, दिल्ली, ग्वालियर, हरिद्वार और चित्रकूट के बाद फिर भोपाल में चौपालियों का पड़ाव। छह मीडिया चौपाल के बाद पहला महोत्सव। अपनी तरह का अनोखा और अनूठा प्रयास । मीडिया चौपाल की श्रृंखला को जारी रखते हुए इस बार एक सर्वथा नए स्वरुप, विस्तार और व्यापकता के साथ ‘मीडिया महोत्सव’ की शुरुआत की जा रही है। इसका उद्देश्य जनसंचार माध्यमों का मानविकीकरण, भारतीयकरण, सामाजीकरण और सकारात्मकता हैl  संचारकों का नेट्वर्किंग, क्षमता संवर्धन और सशक्तिकरण भी मीडिया महोत्सव का प्रमुख उद्देश्य है। 

छह वर्ष पहले संचार कर्मशीलों का जुटान भोपाल में हुआ था, तब से जो सिलसिला शुरू हुआ वह निरंतर जारी है। पिछ्ले साल की चौपाल चित्रकूट में जमी थी। इससे पहले वर्ष 2012 और 2013 में मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने भोपाल में चौपाल की मेजबानी की थी। हर बार स्पन्दन संस्था की भूमिका संयोजन और समन्वय की ही होती है। चौपाल के आयोजनों में अब तक मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्, सीएसआईआर–निस्केयर, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, दिव्य प्रेम सेवा मिशन, राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद्, अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर, भारतीय जनसंचार संस्थान, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, इंडिया वाटर पोर्टल और इंडियन साइंस राइटर्स एसोशिएसन, विज्ञान भारती, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र, दीनदयाल शोध संस्थान जैसी संस्थाओं सहयोग किया है। यह कहना उचित ही होगा कि मीडिया चौपाल की तरह यह ‘मीडिया महोत्सव’ भी संस्थानों की साझी विरासत और साझा प्रयास है। साझेदारों और सहयोगियों की तादाद बढ़ाना हम चौपालियों की ही जिम्मेदारी है।
पूछने वाले पूछ सकते हैं कि मीडिया चौपाल या मीडिया महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य क्या है? यह सवाल वाजिब है और जरूरी भी। दरअसल, नदी-पानी, पर्यावरण, विज्ञान, विकास या ग्रामोदय, मुद्दा कोई भी हो – यह सब चौपालियों के जुटने और एकजुट होने का बहाना है। यह सही है कि चौपाल में पिछले छह वर्षों से कोई मुद्दों के कारण, तो कोई व्यक्ति विशेष के कारण अपनी भागीदारी करता रहा है। कोई जमावडा देखने आता है, तो कोई अपना संपर्क बढाने। लेकिन यह भी एक बड़ा सच है कि ज्यादातर चौपाली चौपाल में सीखने और सिखाने आते हैं। वे एक-दूसरे के साथ मिलते-जुलते स्वयं को समृद्ध और सशक्त करने आते हैं। चौपाली, जो किसी न किसी संचार माध्यम से जुड़े संचारक हैं, कमजोर रहेंगे तो समाज को सशक्त कैसे कर पायेंगे ! दरअसल संचार माध्यमों और संचारकों का उद्देश्य ही ज्ञानयुक्त, शिक्षित, जागरुक और संवेदनशील समाज का निर्माण है। यह तभी संभव है जब ये गुण माध्यमों और संचारकों में भी विद्यमान हों। इसीलिये चौपाल के बारे में बार-बार कहा गया है कि यह संचार कर्मशीलों, पत्रकारों, संचार प्रतिनिधियों को सन्देश, नेटवर्किंग और माध्यम अभिसरण (मीडिया कंवर्जेंस) के द्वारा सशक्त करने का माध्यम बन रहा है। अगर संचारक को ही विषय का व्यापक ज्ञान न हो, वह मुद्दों पर आधी-अधूरी समझ रखता हो तो समाज को वाजिब सन्देश कैसे दे पायेगा ! इसीलिये सन्देश वाहक को विज्ञान, विकास, सभ्यता-संस्कृति, प्रकृति, पर्यावरण, नदी, पानी, खेती-किसानी, सुरक्षा जैसे मुद्दों के साथ देश-काल और परिस्थिति आदि के बारे में भी सही समझ होना जरूरी है। पत्रकारिता और संचार के शिक्षण संस्थानों में संचार कौशल, प्रक्रिया व पद्धति के बारे में तो पढाया-सिखाया जाता है, लेकिन समसामयिक महत्व के विषय छूटते रहे हैं। वैसे भी आजकल सामान्य पत्रकारिता का जमाना नहीं रहा। संचारकों के लिए संचार विशेषज्ञता के साथ ही मुद्दों, विषयों की विशेषज्ञता या कम से कम सामान्य समझ आवश्यक है। इसलिये भी चौपाल का महत्त्व प्रासंगिक हो जाता है।

वर्त्तमान जनसंचार माध्यमों में राजनीति, अपराध और मनोरंजन की बढ़ती हिस्सेदारी चिंता की बात है। माध्यमों में ज्ञानात्मक पक्ष उपेक्षित है। संचार माध्यमों पर यूरोपीय, नकारात्मक, और अमानवीय पक्ष हावी है। माध्यमों को भारतीय, सकारात्मक और मानवीय होने की जरूरत है। गैर-जरूरी सन्देश लेना पाठक, श्रोता एवं दर्शक के लिए मजबूरी है। माध्यमों में मनोरंजन का ही बोलबाला है, से शिक्षा लगभग नदारद है। मीडिया चौपाल का एक उद्देश्य यह भी है कि समाज की जरूरतों के लिहाज से विकास, विज्ञान, पर्यावरण, संस्कृति और गैर राजनीतिक, गैर-आपराधिक तथा गैर-मनोरंजनात्मक संदेशों को भी वाजिब स्थान और समय मिले। इसके लिये संचारकों का प्रशिक्षण और उन्मुखीकरण जरूरी है। इसीलिये ग्वालियर और दिल्ली के मीडिया चौपाल में देश और मध्यप्रदेश की नदियों को जानने-समझने के साथ ही नदी-विज्ञान और पारिस्थितकी, जनमाध्यमों में नदियां : स्थिति, चुनौतियां और सम्भावनायें, नदियों का पुनर्जीवन : संचारकों की भूमिका, नदियों की रिपोर्टिंग के लिये इसके विविध पक्षों को भी जाना-समझा। इस चौपाल की खास बात यह रही कि प्रतिभागियों ने नदी के सैद्धांतिक पक्ष के परिपेक्ष्य में नदी की वास्तविकता को देखा। इसके लिए चौपाल में नदी भ्रमण का खास सत्र रखा गया था। चौपालियों, विशेषरूप से विद्यार्थियों ने नाले में बदल गये नदी को खुली आंखों से देखा। वे न सिर्फ नदियों के विज्ञान और इतिहास से रू-ब-रू हुए, बल्कि वे ये भी जान सके कि कोई नदी नाले में कैसे तब्दील हो जाती है। इसी प्रकार हरिद्वार मीडिया चौपाल में संचारकों ने विकास की अवधारणाओं और प्रारूपों (मॉडल) समझने की कोशिश की। चित्रकूट मीडिया चौपाल में ग्रामोदय की अवधारणा, नीति और कार्य-योजना को जानने की कोशिश की गई।

जानकारी लेने-देने, जागरूक करने, सम्वेदंशीलता बढाने, शिक्षित करने और प्रेरित करने के साथ ही व्यवहार परिवर्तन में मीडिया (जनसंचार माध्यमों) के महत्त्व को सभी ने स्वीकार किया है। मीडिया के समुचित, योजनाबद्ध और रणनीतिक उपयोग के द्वारा किसी अभियान, जनान्दोलन और कार्यक्रम की सफलता सुनिश्चित की जा सकती है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन सहित अनेक परिवर्तनकारी उद्देश्यों के लिये जन-माध्यमों का उपयोग किया जाता रहा है। किंतु कुछ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि वर्तमान मीडिया में अधिकांश स्थान और समय – राजनीति, अपराध और मनोरंजन को मिलता है। विकास-पर्यावरण, संस्कृति-परंपरा, ज्ञान- विज्ञान से संबंधित मुद्दे या तो मीडिया में दरकिनार हैं या हैं भी तो बहुत कम। सम्प्रेषण में विषय-विशेषज्ञता को कम महत्त्व दिया जा रहा है। मीडिया संस्थानों और मीडिया शिक्षण में विशेष-विषय का ज्ञान और इसके प्रभावी संप्रेषण की प्रेरणा भी बहुत कम है। यही कारण है कि विकास, ज्ञान-विज्ञान और अन्य विषयों से संबंधित रिपोर्टिंग, फीचर लेखन, आलेख और साक्षात्कार आदि में गुणात्मक और मात्रात्मक कमी दिखाई देती है। अत: विभिन्न वर्गों में जागरुकता, संवेदनशीलता और व्यवहार परिवर्तन के लिये विशेष प्रकार की संप्रेषण योजना और रणनीति की आवश्यकता महसूस की जाती है। वर्तमान समय में यह बेहद आवश्यक है कि विकास-पर्यावरण, संस्कृति-परंपरा, ज्ञान- विज्ञान आदि विषयों को मीडिया में वाजिब स्थान और समय मिले। लगातार कोशिशों के बावजूद भी राजनीति, अपराध और मनोरंजन आवश्यकता से अधिक स्थान और समय ले रहा है। इसमें से कुछ समय और स्थान की कटौती हो और यह विकास संबधी विषयों को भी मिले।

संचार माध्यमों में संचारकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। संचारक ही संचार माध्यमों को आम जनता के लिए सरल, सहज, अनुकूल और उपयोगी बनाता है। इसीलिये संचार माध्यमों के सशक्तिकरण के साथ-साथ संचारकों का सशक्तिकरण भी आवश्यक है। कहा जा सकता है कि जन-माध्यमों के विकास के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं और संचारकों का माध्यम सशक्तिकरण भी उतना ही जरूरी है। मीडिया चौपाल की अवधारणा संचार माध्यमों के साथ ही उसके उपयोगकर्ताओं और संचारकों के क्षमता संवर्धन से भी जुडी है। संचार माध्यम (मीडिया) के क्षेत्र में संगठित और असंगठित दोनों स्तरों पर प्रयास हो रहा है। इन प्रयासों को एक मंच प्रदान करना, संचार के विविध माध्यमों (मीडिया) के अभिसरण (कन्वर्जेन्स) के लिए प्रयास करना, संचारकों का नेटवर्किंग करना तथा इसके द्वारा विकासपरक संचार को बढावा देना मीडिया चौपाल का प्रमुख उद्देश्य रहा है। मीडिया चौपाल के माध्यम से यह कोशिश होती रही है कि जन-कल्याण के मुद्दे, खासकर- विज्ञान, विकास, समाज-संस्कृति भी जन-माध्यमों के एजेंडे का अधिक से अधिक हिस्सा बन सकें।

संचारकों के सशक्तिकरण और विकासात्मक संचार को विस्तार देने के उद्देश्य से वर्ष 2012 में इस सिलसिले की शुरुआत हुई थी। शुरुआती दो चौपाल भोपाल में आयोजित किया गया। 12 अगस्त, 2012 को “विकास की बात विज्ञान के साथ – नये मीडिया की भूमिका”  विषय पर एक दिवसीय चौपाल का आयोजन भोपाल में हुआ था, जबकि 14-15, सितम्बर, 2013 को “जन-जन के लिए विज्ञान, जन जन के लिए मीडिया” विषय पर वेब संचालक, ब्लॉगर्स, सोशल मीडिया संचारक और आलेख-फीचर लेखकों का जुटान भी भोपाल में ही हुआ था। इस चौपाल में नया मीडिया, नई चुनौतियां (तथ्य, कथ्य और भाषा के विशेष सन्दर्भ में), आमजन में वैज्ञानिक दृष्टि का विकास और जनमाध्यमों की भूमिका, विकास कार्य-क्षेत्र और मीडिया अभिसरण (कन्वर्जेंस) की रूपरेखा, आपदा प्रबंधन और नया मीडिया, नये मीडिया के परिपेक्ष्य में जन-माध्यमों का अंतर्संबंध तथा सुझाव और भावी रूपरेखा आदि विषयों पर चर्चा हुई थी।

इसी प्रकार वर्ष 2014 में नद्य: रक्षति रक्षित: की अवधारणा पर केन्द्रित “नदी संरक्षण में मीडिया की भूमिका” पर मीडिया चौपाल का आयोजन नई दिल्ली स्थित भारतीय जनसंचार संस्थान में 11-12 अक्टूबर को हुआ। वर्ष 2015 में जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में 11-12 अक्टूबर को मीडिया चौपाल नदी सरक्षण के विषय पर ही सम्पन्न हुआ।

वर्ष 2016 में 22-23 अक्टूबर को हरिद्वार में विज्ञान और विकास के साथ मीडिया के अंतर्संबंधों को समझने-बूझने के लिए चौपाली जुटे। इस बार दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक आशीष गौतम और सामाजिक कार्यकर्ता संजय चतुर्वेदी जी के आमंत्रण पर हरिद्वार में चौपाल लगना तय हुआ । दैव-संयोग से चौपालियों को देवभूमि में जुटने का सौभाग्य मिला। देवभूमि के आमंत्रण, सहयोग, सहूलियत और सद्भाव के प्रति दिव्य प्रेम सेवा मिशन परिवार के प्रति सभी चौपालियों का कृतज्ञ होना स्वाभाविक ही था। इस चौपाल के सफल आयोजन में देव संस्कृति विश्वविद्यालय की भूमिका स्मरणीय और उल्लेखनीय है। गत वर्ष चौपालियों को चित्रकूट से दीनदयाल शोध संस्थान का बुलावा मिला। वर्ष 2017 में 25 से 27 फरवरी तक ग्रामोदय मीडिया चौपाल का आयोजन हुआ।
इन आयोजनों में जनसंचार माध्यमों और संबन्धित विषयों के विशेषज्ञों सहित विद्यार्थियों, संचारकों, अध्यापकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सीखने-सिखाने का प्रयास किया। अपने अनुभवों को साझा करते हुए बेहतर विकासात्मक संचार की सम्भावनाओं पर विमर्श भी किया। संचार को लोकहितकारी और लोक-कल्याणकारी भावनाओं से पोषित करने की योजना और रणनीति पर भी बात की गई। देवी अहिल्या विवि इंदौर, इंक मीडिया स्कूल (सागर), अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विवि वर्धा, खालसा कालेज नई दिल्ली, भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली, दीनदयाल शोध संस्थान जैसी संस्थाओं की भीगीदारी के साथ ही विषय-विशेषज्ञ के रूप में श्री के. एन. गोविन्दाचार्य, श्री अनुपम मिश्र, श्री सुरेश प्रभु, श्री राममाधव, श्री प्रभात झा, श्री जयभान सिंह पवैया, श्री अनिल माधव दवे, श्री दिनेश मिश्र, प्रो. प्रमोद के. वर्मा (महानिदेशक, म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद), प्रो. बृज किशोर कुठियाला (कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल), डा. रमेश पोखरियाल निशंक, प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज, प्रो. हेमंत जोशी (विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता विभाग, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली), ड़ा. मनोज पटेरिया (अपर महानिदेशक, प्रसार भारती), श्री के. जी. सुरेश (वरिष्ठ पत्रकार), श्री प्रेम शुक्ल (संपादक, सामना हिन्दी), प्रो. कुसुमलता केडिया, श्री अभय महाजन, ड़ा. सुबोध मोहंती (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली), श्री गिरीश उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार), , श्री उमाकांत उमराँव, श्री आर.एल फ्रांसिस (वरिष्ठ स्तम्भकार), श्री प्रकाश हिन्दुस्तानी (वरिष्ठ पत्रकार और ब्लागर), सुश्री स्मिता मिश्रा (स्वतंत्र पत्रकार, नई दिल्ली), श्री जयदीप कर्णिक (वेब दुनिया), श्री रमेश शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार), श्री रितेश पाठक (संपादक, योजना, नई दिल्ली), श्री अनिल पाण्डेय, श्री यशवंत सिंह, श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी, श्री केसर सिंह, श्री संजय तिवारी, श्री उमेश चतुर्वेदी, श्री राजकुमार भारद्वाज, सुश्री कायनात काजी, श्री अनुराग पुनेठा, श्री हितेश शंकर, श्री स्वदेश सिंह, श्रीमती सुभद्रा राठौर, श्रीमती संध्या शर्मा, श्रीमती सरिता अरगरे, श्रीमती संगीता पुरी, सुश्री वर्तिका तोमर, सहित लगभग 500 से अधिक पत्रकारों, स्तंभ-लेखकों, वेब संचालक, ब्लॉगर्स, सोशल मीडिया संचारक, आलेख-फीचर लेखकों और संचार के शोधार्थी व अध्येता इस चौपाल से जुड़ चुके हैं। यह कारवां बढ़ता जा रहा है। विषय विशेषज्ञों और संचारकों का मेल एक शुभ संकेत है।

मीडिया चौपालों की सफलता ने मीडिया महोत्सव के लिए प्रेरित किया। तय यह हुआ कि वर्ष भर देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग मुद्दों पर क्षेत्रीय स्तर पर छोटे-बड़े मीडिया चौपालों का आयोजन होगा। फिर साल के अंत में देशभर के चौपाली मीडिया महोत्सव के लिए जुटेंगे। इसमें पत्र-पत्रिका, रेडियो-टेलीविजन, वेब-ब्लॉग व डिजिटल माध्यमों के कर्मशील तो होंगे ही साहित्य-सिनेमा, कला-संस्कृति के धर्मी भी होंगे। पुस्तकों और फिल्मों का प्रदर्शन भी होगा और रंगकर्म की प्रस्तुति भी। संचार माध्यमों की पुरातन और नूतन विधाओं का संयोग होगा यह मीडिया महोत्सव। इस बार मीडिया महोत्सव भारत की सुरक्षा पर केन्द्रित है।

“मीडिया महोत्सव – 2018” का आयोजन 31 मार्च-01 अप्रैल, 2018 (चैत्र पूर्णिमा- वैशाख कृष्ण प्रथमा, विक्रम संवत 2075) को भोपाल (मध्यप्रदेश, भारत) स्थित ‘मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् परिसर में प्रस्तावित है l आयोजन में मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्, निस्केयर (सीएसआईआर), राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, देव संस्कृति विश्वविद्यालय (हरिद्वार), भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय, इंडिया वाटर पोर्टल, विवेकानंद केंद्र (भोपाल), विश्व संवाद केंद्र, जनसंपर्क विभाग (म.प्र. शासन) सहित अनेक शासकीय व स्वैच्छिक संस्थानों की साझेदारी रहेगी। 
मीडिया महोत्सव दो दिवसीय और लगभग 8 सत्रों में संपन्न होगा। इन सत्रों में भारत की सुरक्षा के विविध आयाम और जनसंचार माध्यमों से सम्बंधित विभिन्न मुद्दों – भारत की सुरक्षा : देश, काल, परिस्थिति के परिप्रेक्ष्य में, साइबर एवं डिजिटल युग में व्यक्ति, परिवार एवं समाज की सुरक्षा सुरक्षा, पांथिक एवं साम्प्रदायिक/मजहबी कट्टरता के दौर में सुरक्षा, भारत की सुरक्षा और मीडिया : अंतर्संबंधों की पड़ताल, भारत की सुरक्षा : राजनीति और मीडिया की नजर में, भारत की सुरक्षा : मीडिया, विज्ञान और टेक्नॉलाजी, सभ्यतागत एवं सांस्कृतिक सुरक्षा की चुनौतियां आदि पर गंभीर विमर्श होगा। 

मीडिया क्षेत्र में रूचि रखने वाले विद्यार्थी, अध्येता, अध्यापक, पत्रकार, साहित्यकार, ब्लॉगर, वेब संचालक, लेखक, मीडिया एक्टिविस्ट, संचारक, मत-निर्माता, रंगकर्मी, कला-धर्मी अपना पंजीयन करें और मीडिया महोत्सव में सहभागी हों इसी में हमारे प्रयासों की सार्थकता है।

साभार : http://www.spandanfeatures.com/media-chaupal-to-media-festival-empowerment-of-communicators/

मार्च 23, 2018

राग भैरवी की धुन पर थिरके कदम


स्ट्रिंग्स एंड स्टेप्स महोत्सव 2018 में हुई कत्थक से सजी कई मनमोहिनी प्रस्तुतियाँ
नई दिल्ली: भारत की सां​स्कृतिक धरोहर है यहां का संगीत और नृत्य। कुछ ऐसा ही देखने को मिला इंडिया ​हेबिटेट सेंटर के स्टेनिन सभागार में जहां संगीत  के सुरें पर ​थिरकते कदम देखकर ऐसा लगा मानो वंसत की मनमोहनी ​ऋतु के अवतरण हो रहा हो जनजन का मन लुभाने के लिए। विगत सोमवार को ढलती शाम के साथ संगीत और नृत्य की मधुर तरंगिनी से सजी स्ट्रिंग्स एंड स्टेप्स महोत्सव 2018 में कई मनमोहक प्रस्तुतियां सम्पन्न हुई।

कार्यक्रम का शुभारंभ केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावलेभूतपूर्व राज्यपाल छत्तीसगढ शेखर दत्त, डीसीपी दिल्ली जितेन्द्रमणि त्रिपाठी और संस्था के प्रमुख नील रंजन मुखर्जी के साथ संगीता मजूमदार ने दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया। इसके बाद स्ट्रिंग्स एंड स्टेप्स की छात्राओं ने कत्थक नृत्य से सजी गणेश वंदना की प्रस्तुती दी। इस मोहक प्रस्तुती के बाद संगीता और कुमार प्रदीप्तो के युगल कत्थक नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत की गई शिवस्तुति ने दर्शकों को तालियां बजाने के लिए बाध्य कर दिया। कत्थक वेशभूषा में दोनों कलाकारों ने सत्यम, शिवम, सुंदरम की रचना को जीवंत किया। इस नृत्य में उनका साथ दे रहे थे हवाइन गिटार पर नील रंजन मुखर्जी जोकि शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता हैं। क्रमश: शिव पार्वती के लास्य और ताडंव नृत्य में दोनों कलाकारों की प्रतिभा के साथसाथ साजों पर संगत कर रहे, गायन और पढंत कलाकारों को भी खासा योगदान रहा। नर्तकों के आपसी तालमेल, नालिनी निगम का मधुर गायन, मयूख भट्टाचार्य द्वारा पढंत, जुहेब अहमद के तबले की थाप, हिमाशुं दत्त की बांसूरी की धुन और भानू सिसोदिया के पखावज ने कार्यक्रम की सांस्कृतिक प्रस्तुती के लिहाज से शिखर पहुंचा दिया। 

कार्यक्रम के अंतिम चरण में देशविदेश में हंस वीणा के ख्याति लब्ध वादक बरून कुमार पाल और तबला वादक उस्ताद अकरम खान के साथ राग वसंत की मधुरिम तान छेड़ी। जिसने श्रोतओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का संचालन राधिका ने किया। इस मौके पर केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा नृत्य और संगीत से सजी यह प्रस्तुतियां वास्तव में बहुत सराहनीय हैं। उन्होंने स्ट्रिंग्स एंड स्टेप्स की संगीता मजूमदार की भूरि भूरि प्रशंसा की और कहा कि इस तरह के नृत्य से भारतीय संस्कृति के मानदंडों को बाखूबी स्थापित किया जा सकता है।

वो कभी हमारे नहीं हो सकते.....









आसमान के किसी कोने से झांकती-ताकती होंगी,
इस देश को निहारती होंगी,
भगत, राजगुरू और सुखदेव की रूहें,
फूट फूट कर रोती होंगी,
और सिसकते हुये सहसा कह उठती होंगी,
देखो साथियों इसलिए हम झूले थे फांसी पर,
देखो कैसे हमको-तुमको,
हम सब साथियों को,
बाँट लिया है,
इन्होने राजनीति करने के लिए,
आज हमारी तस्वीरें लगाएंगे,
फूल मालाएँ चढ़ाएँगे,
गीत गाएँगे, जलसे होंगे,
हमारी शहादत पर होंगे बड़े बड़े व्याख्यान,
लेकिन ये सब केवल एक दिन का है,
इसके बाद फिर से ये
कभी आजाद के नाम पर,
कभी सुभाष के नाम पर,
कभी महात्मा के नाम पर,
कभी अशफाक़ के नाम पर,
कभी बिस्मिल के नाम पर,
कभी हमारे नाम पर, कभी तुम्हारे नाम पर,
करने लगेंगे राजनीति.....
एक पल को सब ठहर सा जाता है,
फिर से आवाज आती है
साथियों लेकिन न जाने क्यों फिर से,
भारत में फिर पैदा होने का मन करता है,
फिर से इन देश तोड़कों से लड़ने का मन करता है,
इन्हें बताने का मन करता है,
तुम स्वार्थ के लिए मेरे विचार बेचते हो,
करते हो भारत को तोड़ने का षड्यंत्र,
मेरे विचारों को बेचना बंद करो,
हमने भारत की अखंडता के स्वप्न सँजोये थे,
इन को समझाना चाहता हूँ,
भारत एक है, अखंड है,
भारत है तो तुम हो, ये न होगा तो कुछ भी न होगा,
भारत को भारत रहने दो,
और कहना चाहता हूँ
भगत, सुखदेव, राजगुरु, आजाद, बिश्मिल, अशफाक़ को,
मत बांटो,
माँट बांटो हमें,
धर्म और राजनीतिक विचार के नाम पर,
हम अखंड भारत का विचार हैं,
हम भारत हैं,
जिन्हे देश से प्यार नहीं,
जो देश को बेचने का स्वप्न पालते हैं,
वो कभी हमारे नहीं हो सकते
वो कभी हमारे नहीं हो सकते.....