नवंबर 16, 2016

The Timeless Echo of Words

Written By Shruti Bhatnagar 
Words, once printed have a life of their own. They are immortalized, they become eternal-
infinite even. They stand the test of time; stand tall when even the most powerful of the
civilizations go to ruins. Etched in ink and paper, they turn into a weapon mightier than the
sword for its legacy cannot be erased.

Words, when spoken are merely a means of communicating with the mankind; but when
penned, become a way of life.

In keeping true to the essence of the potent word- a weapon mightier than the sword; the
Young Professional Programme being held on 2 nd  -3 rd  December 2016 at the India
International Centre New Delhi is focusing the training on new product development
strategies for publishing and content industry and seeks participation from professionals
hailing from diverse backdrops into the publishing field in India. The programme is aimed at
young professionals active in the field of Editorial, Operations and Sales & Marketing
streams.
Their motto- Reinvent, Repurpose, Repackage- says it all; not only in the context of
achieving professional excellence but also holding court in the intellectual arena in general.
The training programme provides an astounding opportunity to the skilled personnel to
remould themselves as per the changing dynamics of the publishing industry. It opens up the
doors to innumerable prospects into the interesting aspects of the career.

The young minds house the brightest ideas of all; they’re similar to a mine of gold just
waiting to be explored. There are endless possibilities of stumbling upon a sheer genius idea
through the means of appropriate conditioning. Publishing is not just the domain of the pre
existing corporate firms and companies. It offers an excellent career opportunity to anyone
who holds the faintest sliver of interest in appreciating the beauty of the print and publishing.

The art of laying the foundation of something that would stay constant and documented.
Being the only convention of its kind in the Indian subcontinent, the Young Professional
Programme opens up the broad spectrum to insights, opportunities and possibilities in the
field of publication. Deviating from the mainstream media, this arena blossoms into
unexplored panorama of the publications that are capable of winning over the population
solely based upon the supremacy of static words.

Objectives of the programme:

 work through the stages of product development in cross-functional teams (the teams
will be formed on the basis of function, publishing category and preference of the
participant)
 Engage with their ideas using the design thinking method
 Develop customer-related creative projects
 Cultivate and execute new ideas with an entrepreneurial approach
 Learn about licensing  
 Pitch your plan to the management of the company
 Expect to learn everything you need to develop new ideas from scratch to finish for
your company!
 Consumer Insights presented by Mr. Vikrant Mathur from Nielsen India.

A brief about the programme mentors:
R.Sriram co-founded “Next Practice Retail” in 2006 and is an advisor to Seedfund. He is an
Independent Director on the Boards of Kokuyo Camlin Ltd and Kokuyo Camlin Alphakids
Ltd. He served as President of The Indus Entrepreneurs (TiE) Mumbai (2010-12). He serves
on the board of advisors of the non-profits Pratham Books, Junoon Theatre and Toybank.  He
established the Crossword Book Awards (now Vodafone Crossword Book Awards) to
annually recognize & reward the best of Indian writers & books, that he continues to oversee.

He has curated the Kala Ghoda Literature Festival from 2005 to 2010. He’s a visiting faculty
at IIM A & a guest lecturer at IIM L & other business schools. He is particularly interested in entrepreneurship, innovation, business strategy & incubation, purpose & culture, leadership & next practices.

Katja Splichal has been working as the head of learning management systems at Stuttgart
based publisher Eugen Ulmer since 2013. Since April 2014, she is also heading the online publishing department and is member of the Executive Committee. Her main fields of work include the development of the CMS, the development of digital business models, the implementation of solutions for digital publishing in e-books, apps, e-papers and databases, as well as support for the e-learning business segment. Prior to that, she was the Head of
Media Relations & Product Development at PaperC from 2011 to 2013.

Industry Talk by Mr.Vikrant Mathur: Vikrant Mathur was appointed as Associate
Director of Nielsen BookScan in 2010 and currently heads up the Indian operations of
Nielsen Book. He and his team are also responsible for the development and sales of Nielsen
BookData information services and instrumental in educating the book industry about the
importance of metadata to both publishers and booksellers and the benefit and value to their
businesses. He has more than 13 years experience in the Market Research Industry and has
worked cross verticals including information, technology and consumer markets

नवंबर 06, 2016

युद्ध का मूक शिकार बन रहा पर्यावरण

प्रत्येक वर्ष 6 नवबंर को संयुक्त राष्ट युद्ध एवं सशस्त्र संघर्षों में पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाव के लिए अन्तर्राष्टीय दिवस मनाता है। इसका उद्देश्य मानव समुदाय और सरकारों को जागरूक और शिक्षित करना है। पर्यावरण को युद्ध से होने वाले नुकसानों को रेखांकित करता एक आलेख डेली न्यूज जयपुर के हमलोग परिशिष्ट में प्रकाशित हुआ। 
http://dailynewsnetwork.epapr.in


अक्तूबर 14, 2016

कुपोषण और भूख से जूझता देश

अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रत्येक वर्ष जारी होने वाले वैश्विक भूख सूचकांक की ताजा रिपोर्ट में भारत भूख से हारता दिख रहा है। एक बार फिर भूखमरी और कुपोषण की बदहाली भारत के थोथे विकास को आईना दिखा रही है। सूची में शामिल 118 देशों की सूची में 28.5 अंकों के साथ भारत 97वें स्थान पर है। जो पिछले वर्षों के आंकड़ों से बदतर है। विश्व में सर्वाधिक तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का यह हाल देखकर लगता है कि भारत अपने देश के लोगों को भोजन देने में असमर्थ है। अगर अभी यह हाल है तो आने वाले 10 सालों में जब भारत की जनसंख्या विश्व में सबसे ज्यादा होगी तो यह स्थिति और भी अधिक बदतर हो जायेगी।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक विश्व के विकासशील देशों में भुखमरी तथा कुपोषण की गणना एवं इसके तुलनात्मक अध्ययन हेतु एक बहुआयामी सूचकांक है। इस सूचकांक को अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थानद्वारा दो गैर-सरकारी संगठनों वेल्ट हंगर हिल्फ’  और कंसर्न वर्ल्ड वाइडकी सहायता से प्रति वर्ष प्रकाशित किया जाता है। इस सूचकांक को गत वर्ष तक तीन संकेतकों अल्पपोषण’, ‘बाल अल्पवजन’  एवं बाल मृत्यु दर’, के आधार पर तैयार किया गया था किंतु वर्ष 2016 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक को चार संकेतकों अल्पपोषण’, ‘लंबाई के अनुपात में कम वजन अर्थात बाल दुबलापन’ , आयु के अनुपात में कम लंबाई अर्थात बाल ठिगनापनतथा बाल मृत्यु दरके आधार पर तैयार किया गया है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक 100 आधार बिंदुओं के पैमाने पर तैयार किया जाता है जिसमें शून्य सबसे अच्छा स्कोर माना जाता है अर्थात कोई भूखा नहीं जबकि 100 सबसे खराब स्कोर होता है जिसमें सभी भुखमरी की स्थिति में हैं। यह दोनों ही स्थितियां व्यवहार में नहीं पाई जाती हैं। व्यवहार में  जीरो से 100  के बीच की स्थिति पाई जाती है। इस सूचकांक में कम मान’  देश की अच्छी स्थिति को दिखाता है, वहीं अधिक मानदेश में भुखमरी की भयावहता को प्रदर्शित करता है। रिपोर्ट भारत के लिए संतोषजनक नहीं हैं। क्योंकि उसे गंभीर देशों की श्रेणी में रखा गया है। भारत में 39 फीसदी बच्चे बौने तथा कुपोषण के शिकार हैं। पड़ोसी देशों से तुलना करें तो भारत की स्थिति पाकिस्तान और बांग्लादेश से बहुत थोड़ी अच्छी है। इनसे वह दोचार पायदान ऊपर है। जबकि श्रीलंका और नेपाल से बहुत पीछे है। यही नहीं, भारत अफ्रीका के गरीबी से जूझ रहे कई देशों से भी बहुत पीछे है। इस सूची में चीन का स्थान तीसवां है और वह हमसे 67 पायदान ऊपर हैं।
यह पहली रिपोर्ट नहीं है जिसने भारत के विकास की पोल खोली है। इससे पूर्व भी संयुक्त राष्ट संघ की 2014—15 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 20 लाख लोग भूख के शिकार थे। अगर अर्थशास्त्रियों की माने तो इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण बेरोजगारी है। यह सर्वविदित है कि भारत ने शिक्षा के स्तर पर अभूतपूर्व सफलता हासिल की लेकिन जिन लोगों को शिक्षित किया उन्हें रोजगार देने में सरकारें विफल रहीं। स्टार्ट अप इंडिया और मेक इन इंडिया के माध्यम से मोदी सरकार ने कुछ प्रयास किया लेकिन वह नाकाफी ही नज़र रहा है। लेबर ब्यूरों के आंकड़ों की बात करें तो देश का 2014—15 में बेरोजगारी रेट पिछले पांच वर्षों की तुलना में सबसे ज्यादा रहा।
अगर इस वैश्विक भूख सूचकांक कुल जनसंख्या में कुपोषणग्रस्त लोगों के अनुपात, पांच वर्ष से कम उम्र वर्ग में सामान्य से कम वजन के बच्चों की संख्या और पांच साल से कम आयु के बालकों की मृत्युदर के आधार पर बनता है।
इसमें भारत की स्थिति बिगड़ने की अहम वजह पांच साल तक के बच्चों में कुपोषण रहा। इसका कारण मध्याह्न भोजन, एकीकृत बाल विकास, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मनरेगा जैसे कार्यक्रम और योजनाएं का सही ढंग से लागू हो पाना ही रहा होगा। मनरेगा और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं को छोड़ दें तो अन्य योजनाएं दशकों से लागू हैं। तब इनके सार्थक सकारात्मक परिणाम मानव प्रगति सूचकांक से जुड़ी पिछली रिपरेटों में क्यों नजर नहीं आते? इसका अर्थ है जमीनी स्तर पर अभी भी कोर कसर बाकी है या फिर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण भारत को वैश्विक स्तर पर यह सब देखना पड़ता है। अगर भारत के राज्यों की बात करें तो एक रिपोर्ट के अनुसार यहां मध्यप्रदेश, झारखंड और बिहार सबसे ज्यादा खराब स्थिति वाले राज्य हैं।

दक्षिण एशिया में सबसे तेज बढ़ने वाले देश की इस स्थिति को देखकर लगता है कि कहीं विकास की झूठी कहांनियां तो नहीं गढ़ी जा रही। ऐसे में राजनेताओं को जीडीपी दर से भी आगे उठकर जमीनी स्तर पर जाकर देश की स्थिति को समझना होगा। तभी देश में गरीबी, बेरोजगारी और कुपोषण की स्थिति का सही आंकलन किया जा सकता है। नहीं तो वैश्विक स्तर की इन रिपोर्टों में देश यूं ही भूख से हारता रहेगा।

यह लेख दैनिक जनसंदेश मध्यप्रदेश में 14 अक्टूबर 2014 को प्रकाशित हुआ।