कन्हैया के भाषण में जेएनयू के हजारों छात्र
उपस्थित थे। एक बात दावे से कह सकता हूं, कि उनमें भी 90 फीसदी लोग इस दक्षिणपंथी
मानसिकता का शिकार होगें। जिन्हें ब्रांडेड कपड़े पहने का शौक होगा, जो शायद ही
किसी राह चलते गरीबी की मदद को हाथ बढ़ते होंगे। हो सकता है 10 फीसदी तुम्हारे
साथ हों। फिर ऐसे में सरकार के 31 फीसदी वोटों पर तुम्हारा तंज समझ नहीं आता। यह
देश जहां कु वोट ही 55-60 फीसदी लोग डालते हों, वह 31 फीसदी वोट बहुत होते हैं।
कन्हैया एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह अपनी बात रख रहे थे और नैतिकता की बात कर
रहे थे, परंतु उन्हें यह याद रखना चाहिए कि राजनीति में नैतिकता नहीं होती, यहां
केवल नीति चलती है। उसी नीति का तुम भी शिकार हो रहे हो। तुम्हारे सहारे वाम,
भारत में वापस आये, यह हो सकता है, लेकिन भारत की जनता आलसी होने में ज्यादा मजे
लेती है। यहां मजदूरी करने में मज़ा नहीं आता भिखारी बनने में मजा आता है। मुझे
लगता है आज जो लोग तुम्हारी वाहवाही कर रहे हैं, तुम्हारी सोच को सराह रहे हैं,
वह लोग कल तुम्हारा साथ न छोड़ दें। जैसे पहले भी होता आया है। तुम्हारी
विचारधारा सराहनीय है, लेकिन राजनीति मे आते ही इस विचारधारा को दक्षिणपंथ की गोद
में बैठते मैने कई बार देखा है। तुम्हारा भी हश्र वही न हो। रही बात मीडिया की,
उसका एक चरित्र है, इसे कोई पात्र चाहिए होता है, आजकल पात्र तुम हो। मीडिया पर
तुम्हारा मंचन चल रहा है। एक साल पहले पात्र कोई और था। उससे एक साल पहले कोई और।
मीडिया, पात्रों के सहारे जीता है। यह पात्र बदलते है, मीडिया नहीं, बस पात्रों से
जुड़ी कहानियां बदल जाती हैं।
अनायास ही गीता के श्लोक याद आ गये। भगवान
कृष्ण, विषाद में फंसे अर्जुन को उपदेश देते हुए, युद्ध करने के लिए तैयार कर रहे
हैं और यह ज्ञान अर्जुन के अलावा संजय के माध्यम से धृतराष्ट्र भी समझ पा रहे
हैं। कुछ ऐसा ही कल भी हुआ। कन्हैया कुमार के भाषण के समय भी कुछ ऐसा ही चरित्र
रचने की कोशिशें की गई। मानों जेएनयू कुरूक्षेत्र की भूमि हो, कन्हैया कुमार खुद
कृष्ण हो जिन्हें भगवान माना जाता है और वह जनता रूपी अर्जुन को गीता का उपदेश
दे रहे हों। मीडिया संजय की तरह, धृतराष्ट्र रूपी जनता तक सबकुछ लाइव दिखा रहा हो।
परंतु देशकाल और समय की परिस्थितियां विपरीत हैं। आज का धृतराष्ट्र प्रतिक्रिया
देना सीख गया है। सोशल मीडिया उसका अच्छा हथियार है। सुबह होते-होते कन्हैया के
ज्ञानरूपी भाषण का खूब विश्लेषण होता है और वह #टैग जैसे छोटे से अविष्कार
के बदौलत विश्वभर में सबसे ज्यादा खोजे जाने वाला इंसान बन जाता है। परंतु कन्हैया
को यह नहीं भूलना चाहिए, कि वह भगवान नहीं है! वह उन्हीं तथाकथित
विचारधाराओं का गुलाम है, जिन्होंने विश्वभर की जनता को लड़ाने के लिए जाना
जाता है।
आज बात मानवतावाद की होनी चाहिए। एक ऐसा वाद
जहां भाव संवेदना हो, जहां प्रेम हो, जहां करूणा हो, जहां दया हो। ऊंच-नीच,
जात-पात और अमीरी-गरीबी का फर्क तब तक नज़र आता है, जब तक भाव संवेदना प्रबल नहीं
होती। जरूरत है भाव संवेदना जागने की। मानवीय हृदय में करूणा के जागरण की। सभी
समस्यायें खुद ब खुद खत्म होती चली जायेंगी।
Sir awesome sir if kaniya get bail then BJP may get loss also na sir
जवाब देंहटाएंनहीं। ऐसा नहीं होगा। थोड़ा बहुत नुकसान हो सकता है, बीजेपी को।
हटाएंकई बार बोलना बहुत आसान होता है ... हकीकत इसके बहुत विपरीत होती है ... बहे नेता सिर्फ अपना मकसद साधते हैं ...
जवाब देंहटाएंहां, मैने दोनों पक्षों को लिखने की कोशिश की। नेताओं को आम समस्याओं से मतलब होता ही नहीं है।
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