भारत में आजादी के लड़ाई एक स्वर में लड़ी गई और वह स्वर था भारतीयता का स्वर। न कोई हिंदु था न कोई मुसलमान न कोई सिख। यह लड़ाई जाति और सम्प्रदाय के बंधन से मुक्त थी। आजादी के बाद देश के बंटबारा हुआ सम्प्रदाय के नाम पर। यह भारतीयता पर अंग्रेजों और देश के कुछ नेताओं की मिलीभगत से हुआ पहला कुठाराघात था। यह वह नींव थी जिस पर वोट बैंक की राजनीति को चमकाने, देश को जाति और सम्प्रदाय के नाम पर बंटाने का खेल शुरू हुआ। एक तरफ सरदार पटेल भारत को एक सूत्र में पिरोने के लिए संकल्पित थे वहीं देश के तत्कालीन नेता, कुर्सी के भूखे नेता और उनकी चापलूसी करने वाले लोग भारतीयता की मूल विचारधारा में सेंध लगाने पर तुले थे। इतिहास लेखन के नाम भारत के मूल पर वार किया गया और भारतीयता के एक सूत्र में पिरोने वाले प्रतीकों से छेड़छाड़ की गई। इसमें भी सबसे पहले हिंदू प्रतीकों राम, कृष्ण, दुर्गा आदि-आदि को न जाने क्या—क्या कहा गया। पांच हजार साल पुरानी सभ्यता और संस्कृति को धता बताते हुए और प्रकृति के अंग अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश का पूजन करने वाले भारत के विकृत रूप को किताबों में, सभाओं में, सेमिनारों के माध्यम से जनता तक पहुंचाया गया। उसे काल्पनिक घोषित किया गया। उद्देश्य था जिससे भारतीयता को खत्म किया जाये। इसमें सबसे बड़ा योगदान रहा वामपंथी बुद्धिजीवियों का और उनका गठजोड़ पाये सत्तालोलुपों का। जैसा कि कहा गया है किसी भी संस्कृति को खत्म करना है तो उसके प्रतीकों पर पहले वार करो। इस कार्य में डूबे वामपंथी कब सेक्यूलरिज्म के नाम पर हिंदू—मुस्लिम तुष्टीकरण और जातिवाद के नाम पर देश को बंटाने तक आ पहुंचे देश को शायद ही पता हो। आज भी यही करने की कोशिश करते हैं। लेकिन देश में ज्यों—ज्यों जागरूकता आयी, लोगों को इनका खेल समझ में आने लगा और राजनीतिक फलक पर ये सिमटते चले गये। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अगुआ पार्टी कांग्रेस जिसकी खुद की कोई न विचारधारा है, न तो काई आधार। वामपंथी गठजोड़ के कारण कांग्रेस ने भी उसी विचार को आगे बढ़ाया जिसे वामपंथी चाहते थे। भारतीय मुसलमानों के सबसे बड़े अपराधी यही हैं। भारतीय दलितों के सबसे बड़े अपराधी यही हैं। क्योंकि इन लोगों आप को वोट बैंक से ज्यादा कभी समझा ही नहीं। रही—सही कसर, समाजवादी, बहुजन समाजवादियों ने पूरी कर दी। ये दोष देते हैं कि संघ की विचारधारा के कारण भारत आज बंटा हुआ है। यह सरासर गलत है, देश को आजादी बाद नेतृत्व देने वाले और उनके साथ गठजोड़ करने वाले सुविधाजीवियों के कारण देश का यह हाल है। संघ की मूल भावना का उदय तो आपकी घटियापन के विरोध की फलश्रुति है। अगर आज वामपंथी और कांग्रेसी, संघ को इस स्थिति का जिम्मेदार मनाते हैं तो मेरा मानना है कि आप अगर सही होते तो शायद ही इस देश में कोई और विचार पनप पाता लेकिन आपने भारतीयता को नष्ट करने का काम किया। भारत में आज रोहिंग्या विरोध भी इसी का परिणाम है। क्योंकि आपने भारत की मूल भावना 'सर्वै भवंतु सुखिन:' का इतना नाजायज दोहन किया कि अब इसमें कुछ बचा ही नहीं है। फिर तो इसका विरोध होना लाजमी है। हमारी परंपरा थी हम सबको गले लगायें। सबको प्यार दें। लेकिन आपने हमें दिग्भ्रमित किया कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, कभी सेक्यूलरिज्म के नाम पर। भारत और भारतीयता के सबसे बड़ी दोषी हैं वो सब जिन्होंने भारतीयता के साथ खिलवाड़ किया, भारत को बांटा। आज का दौर भारतीयता के जागरण का दौर है, दोषी कोई भी हो उसे सजा मिलेगी। जिसने जो किया है, उसे उसके परिणाम भोगने होंगे। क्योंकि भारत और भारतीयता जाग रही है।—————————आदित्य शुक्ला
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें