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कोविड 19 या कोरोना
के संकट के इंसानी जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है। मानवी जीवन के कुछ हिस्से
ज्यादा और कुछ कम प्रभावित हो सकते हैं लेकिन हर किसी पक्ष पर इसका कुछ न कुछ असर
तो हो ही रहा है। शिक्षा जगत भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां इसका व्यापक असर देखा जा
सकता है। गौरतलब है कि 15 मार्च से ही देश के लगभग सभी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों
को बंद कर दिया गया और आदेश दिया गया कि आनलाइन शिक्षा के माध्यम से बाकी बचे
कोर्स को पूरा कराया जाये। सरकार ने भी इस ओर ध्यान देते हुए पहले से मौजूद आनलाइन
शिक्षा के प्लेटफार्मों जैसे स्वयं, ईपीजी—पाठशाला, डिजिटल लाइब्रेरी आदि को उपयोग करने के लिए
नोटिफिकेशन जारी कर दिए। आनलाइन शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए सरकार निरंतर विषय
विशेषज्ञों और इससे प्रभावित लोगों के संपर्क में है। विश्वविद्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों ने भी कोरोना से उत्पन्न समस्या को एक अवसर मानते हुए
आनलाइन शिक्षा को अपना लिया। इस तरह लगभग आनलाइन शिक्षा के 40 दिन देश में पूरे हो
चुके हैं। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आनलाइन शिक्षा में क्या सबकुछ ठीक चल रहा है?
या वो कौन—कौन सी चुनौतियां हैं जिससे शिक्षक
और विद्यार्थी दोनों प्रभावित हैं? क्या स्कूली शिक्षा से
जुड़े करीब 25 करोड़ और उच्च शिक्षा से जुड़े करीब आठ करोड़
विद्यार्थी आनलाइन शिक्षा से जुड़ पा रहे हैं? हालांकि देश
के शिक्षा जगत ने समस्या को अवसर में बदलने के लिए भरसक प्रयास किए हैं परंतु वो
नाकाफी से नज़र आ रहे हैं। भारत में आनलाइन शिक्षा के समाने बहुत सारी चुनौतियां मूंहबाये खड़ी हैं।
यह लेख यह जानने की कोशिश भर है कि देश का शिक्षा जगत, आनलाइन शिक्षा की किन समस्याओं से दो चार हो
रहा है-
पाठ्यक्रम
की असमानता
पाठ्यक्रम की असमानता
एक बहुत बड़ी चुनौती है, जो आनलाइन शिक्षा के समुचित
क्रियान्वयन में आड़े आ रही है। देश में हर शैक्षणिक
बोर्ड,
कॉलेज, विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम अलग अलग
हैं। जिसका अपना एक अलग अर्थशास्त्र है। ऐसे में आनलाइन मौजूद पाठन सामग्री की
उपयोगिता स्वयमेव कम हो जाती है। हालांकि माडल पाठ्यक्रम के नाम पर देश में समान
पाठ्यक्रम लागू करने के प्रयास होते रहे हैं। परंतु सारे प्रयास नकाफी रहे। मसलन
एक विषय लेते हैं, पत्रकारिता
एवं जनसंचार देश के किसी भी विश्वविद्यालय या कॉलेज में समान पाठ्यक्रम नहीं है।
जबकि डिग्रियां समान ही दी जाती हैं। ऐसे में अगर कोई उत्तर भारतीय अध्यापक की
उत्तर भारत के विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम के आधार पर कोई आनलाइन कोर्स तैयार भी
कर ले, तो वह देश के दूसरे हिस्से
के विद्यार्थियों के लिए नाकाफी ही रहेगा। अगर पाठ्यक्रम की असमानता को दूर कर लिए
जाये तो देश के किसी भी कोने में कोई विषय सामग्री तैयार होगी, तब वह सामग्री समानता के साथ देश के सभी विद्यार्थियों के लिए लाभकारी
होगी। इस समान विषय सामग्री का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद आवश्यकता के अनुसार कराया
जा सकता है।
इंटरनेट
स्पीड और तकनीकी का अभाव
भारत में इंटरनेट की
स्पीड एक बड़ी समस्या है। ब्रॉडबैंड स्पीड विश्लेषण करने वाली कंपनी ऊकला की एक
रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2019 में भारत मोबाइल
इंटरनेट स्पीड के मामले में 128वें स्थान पर रहा। भारत में डाउनलोड स्पीड 11.18
एमबीपीएस और अपलोड स्पीड 4.38 एमबीपीएस रही। ऐसे में वीडियो क्लासेज लेते समय
इंटरनेट स्पीड का कम ज्यादा होना समस्या पैदा करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में
इंटरनेट स्पीड की हालत और बुरी है, बिजली चले जाने पर
इंटरनेट या तो बद हो जाता है या फिर 2जी की स्पीड पर कुछ देख सुन नहीं सकते। इसके
अलावा देश के बहुतायत विद्यार्थियों के पास आनलाइन पढ़ने और पढ़ाने के संसाधन ही
उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थितियों में कैसे आनलाइन शिक्षा दी या ली जा सकती है। आजकल
देश में वेबीनार की धूम है लेकिन इनमें प्रतिभागिता करने वाले गिने—चुने लोग ही हैं। शिक्षा जगत से जुड़े बहुतायत लोग इसका लाभ नहीं ले पा
रहे। अगर देखा जाये तो केवल 30 से 40 फीसदी
विद्यार्थी ही इसका लाभ ले पा रहे हैं। भारत
की अधिकांश मोबाइलकंपनियां दिन में 1 से 2 जीबी डाटा उपयोग के लिए दे रही हैं जोकि
हर दिशा से देखने पर कम दिखाई देता है।
तकनीकी
समझ
तकनीकी समझ, आनलाइन शिक्षा की एक बड़ी समसया है। अगर तकनीकी शिक्षा से जुड़े अध्यापकों
और विद्यार्थियों को छोड़ दें तो बाकी लगभग सभी विषयों से जुड़े शिक्षकों और
शिक्षार्थिंयों को तकनीकी समस्या का सामना करना पड़ता है। प्राइमरी और माध्यमिक
स्तर पर ये समस्या बहुत बड़ी समस्या है। आजकल छोटे—छोटे
बच्चों से लेकर बड़ों तक को टेबलेट, लेपटॉप, डेसटॉप और स्मार्ट फोन के सहारे पढ़ाया जा रहा है। ऐसे में अगर तकनीकी सकी
समझ किसी भी स्तर पर हावी होती है तो सिखने की क्षमता की सीधे प्रभावित करती है।
सरकार शिक्षकों की तकनीकी समझ बढ़ाने के लिए लगी तो रहती है लेकिन जमीनी स्तर में
अगर स्थितियों को देखें तो मामला उल्टा ही नजर आता है। दूसरी बात है ये कि शिक्षा
क्षेत्र से जुड़े हुए कई लोग अभी भी तकनीकी को सीखने की इच्छा नहीं रखते। ऐसे में
आनलाइन शिक्षा की उपयोगिता कम होती चली जाती है।
आनलाइन
शिक्षण का स्वरूप
देश में अभी पिछले 40 दिनों में आनलाइन शिक्षण का जो स्वरूप उभर कर समाने आया है उसमें
अधिकांशत: सभी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय जो आनलाइन
शिक्षण चला रहे हैं, वह टाइम टेबल के उसी स्वरूप को अपना रहे
हैं जो वह कक्षाओं में चला रहे थे। ऐसे में समस्या यह खड़ी होती है कि क्या विद्यार्थी
और शिक्षक कुर्सी से चिपके हुए सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक
कक्षायें चला सकते हैं? इसके कई दुष्प्रभाव भी हैं।
सामान्यत: यह संभव नहीं है। फिर भी शिक्षकों और विद्यार्थियों पर यह थोपा जाना एक
बड़ी समस्या है। आनलाइन शिक्षण को सामान्यत: रेगुलर कक्षाओं की तरह नहीं चलाया जा
सकता।
तकनीकी
की लत और दुष्प्रभाव
अभी वर्तमान में
आनलाइन कक्षायें सामान्यत: चार से पांच घंटें तक चलाई जा रही हैं। उसके बाद
शिक्षार्थी को गृहकार्य के नाम पर एसाइनमेंट और प्रोजेक्ट दिए जा रहे हैं।
जिसका औसत यदि देखा जाये तो एक विद्यार्थी
और शिक्षक दोनों लगभग आठ से नौ घंटे आनलाइन व्यतीत कर रहे हैं। जोकि उनकी मानसिक
और शारीरिक स्थिति के लिए घातक है। छोटे बच्चों के लिए और भी अधिक नुकसानदेह है।
कई अभिभावकों ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से बताया कि उनके बच्चों की आंखों में
समस्यायें पैदा रही है। इसके अलावा तकनीकी का बहुतायत उपयोग अवसाद, दुश्चिंता, अकेलापन आदि की समस्यायें भी पैदा करता
है। इन समस्याओं से बचने के लिए प्रभावी चिंतन की आवश्यकता है, जिससे इनसे देश के भविष्य को बचाया जा सके।
बहरहाल
सवाल अब भी वहीं खड़ा है कि क्या आनलाइन शिक्षा एक प्रभावी शिक्षा प्रणाली हो सकती
है,
जो गुरू—शिष्य की आमने सामने पढ़ाई का विकल्प
बने? अभी तक तो ऐसा नहीं दिखता। सरकार और शिक्षा जगत के लोग
इसको बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत हैं लेकिन भारत जैसे बड़े देश में आनलाइन शिक्षा
में आने वाली बाधाओं से पार पाना अभी दूर की कौड़ी नज़र आ रहा है। परीक्षाओं और
तकनीकी विषयों की प्रयोगात्मक परीक्षायें आदि को आनलाइन कराने का सवाल अभी भी जस
का तस खड़ा है। हाल ही में जारी यूजीसी की गाइडलाइन ने भी पेन—कॉपी वाले एग्जाम की ही वकालत की है। आनलाइन शिक्षा के बढ़ाव की भारत में
प्रबल संभावनायें हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। जब
तक चुनौतियों का बेहतर आंकलन नहीं किया जायेगा तब तक अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं
किए जा सकते।
University of Perpetual Help System Dalta Top Medical College in Philippines
जवाब देंहटाएंUniversity of Perpetual Help System Dalta (UPHSD), is a co-education Institution of higher learning located in Las Pinas City, Metro Manila, Philippines. founded in 1975 by Dr. (Brigadier) Antonio Tamayo, Dr. Daisy Tamayo, and Ernesto Crisostomo as Perpetual Help College of Rizal (PHCR). Las Pinas near Metro Manila is the main campus. It has nine campuses offering over 70 courses in 20 colleges.
UV Gullas College of Medicine is one of Top Medical College in Philippines in Cebu city. International students have the opportunity to study medicine in the Philippines at an affordable cost and at world-class universities. The college has successful alumni who have achieved well in the fields of law, business, politics, academe, medicine, sports, and other endeavors. At the University of the Visayas, we prepare students for global competition.