जनवरी 28, 2012

मन के उल्लास का वसंत

        प्रकृति का कण-कण खिलखिला उठा है। मानवी चेतना में ताजगी, पक्षियों की कलरव, पीली-पीली सरसों, पेड़ों का श्रृंगार बनकर उभरी नई कोपलों की मनमोहनी छवि उल्लासित कर रही है। आम के पेडों में उठती आम्र मंजरी की मनोहरी सुगंध और कोयल की कूहकूह मन को तरंगित कर रही है। हर और खुशियों का मौसम है। कड़कड़ाती ठंड भी लौटकर अपने घर जाने को तैयार बैठी है। भगवान सूर्य अपने दिव्य प्रकाश की गर्मी के माध्यम से ठंड में सिकुड़ चुके मानवीय मन को नई ऊर्जा से ओतप्रोत करने की तैयारी कर रहे हैं। प्रकृति सजोसमान जुटा रही है, वह हमें देना चाहती है, नई आशा की किरण, नए विश्वास का सूर्य, नई ऊर्जा से उमंगित मन। वह रंगना चाहती हमको केसरिया रंग में, जो प्रतीक है, बलिदान का, उमंग का, उछाह का, त्याग का। यह विजय का रंग है। जो प्रेरणा देता है कि निरंतरता के साथ हर पल जयगान करो। परिवर्तन को स्वीकारो और आगे बढ़ो, जब तक तुम्हें तुम्हारा लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
    परिवर्तन प्रकृति का नियम है। पतझड़ और इसके बाद आने वाला वसंत इसी का प्रतीक है। वसंत संचार का नाम है। वसंत के माध्यम से कुछ नया करने का संदेश मिलता है। प्रकृति नए परिधान ओढ़ लेती है, नए पुष्पों से धरा सुशोभित होती है। ऐसा लगता है चारों तरफ से प्रकृति की सुंदरता हेमंत की ठिठुरन के बाद बाहर निकलकर आ गई है। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं- वसंत ऋतुनाम कुसुमाकरः, ऋतुओं में मैं कुसुमाकर अर्थात् वसंत के रूप में हूं।
    इसके अलावा वसंत समर्पित है विद्या की देवी सरस्वती के नाम। इसलिए माघ शुक्ल पंचमी को हम वसंत पंचमी के रूप में मानते है। इस दिन हम ऋतुराज वसंत का स्वागत भी करते हैं। इसे ज्ञान पंचमी और श्री पंचमी आदि नामों से भी जाना जाता है। वसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती के प्रकाट्य उत्सव के रूप में सम्पूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है। इसे विद्या की जयंती नाम से भी पुकारा जाता है।
प्राकटयेनसरस्वत्यावसंत पंचमी तिथौ। विद्या जयंती सा तेन लोके सर्वत्र कथ्यते।।
    सनातन धर्म की अपनी अलग विशेषताएं हैं, इसलिए यहां हर दिन त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। शायद इसीलिए इसको संसार में उच्च स्थान प्राप्त है। इसी क्रम में आता है वसंत पंचमी का पर्व। माता सरस्वती विद्याल और बुद्धि की अधिष्ठात्री हैं। उनके हाथ की पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है। उनके कर कमलों की वीणा हमें संदेश देती है कि वसंत के आगमन के साथ ही हम अपने हृदय के तारों को झंकृत करें। माता सरस्वती का वाहन मयूर हमें सिखाता है कि हम मृदुभाषी बनें। अगर हम सरस्वती अर्थात् विद्या के वाहन बनाना चाहते हैं तो हमें अपने आचरण, अपने व्यवहार में मयूर जैसी सुंदरता लानी होगी। इस दिन उनकी पूर्ण मनोभाव से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। हमें स्वयं और दूसरों के विकास की प्रेरणा लेनी चाहिए। इस दिन हमें अपने भविष्य की रणनीति माता सरस्वती के श्री चरणों में बैठकर निर्धारित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त अपने दोष, दुर्गुणों का परित्याग कर अच्छे मार्ग का अनुगमन कर सकते हैं। जिस मार्ग पर चलकर हमें शांति और सुकून प्राप्त हो। मां सरस्वती हमें प्रेरणा देती हैं श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की। इस दिन हम पीले वस्त्र धारण करते हैं, पीले अन्न खाते हैं, हल्दी से पूजन करते हैं। पीला रंग प्रतीक है समृद्धि का। इस कारण वसंत पंचमी हम सबको समृद्धि के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
    वसंत पंचमी वास्तव में मानसिक उल्लास का और आंतरिक आह्लाद के भावों को व्यक्त करने वाला पर्व है। यह पर्व सौंदर्य विकास और मन की उमंगों में वृद्धि करने वाला माना जाता है। वसंत ऋतु में मनुष्य ही नहीं जड़ और चेतन प्रकृति भी श्रृंगार करने लगती है। प्रकृति का हर परिवर्तन मनुष्य के जीवन में परिवर्तन अवश्य लाता है। इन परिवर्तनों को यदि समझ लिया जाए तो जीवन का पथ सहज और सुगम हो जाता है। वसंत के मर्म को समझें, वसंत वास्तव में आंतरिक उल्लास का पर्व है। वसंत से सीख लें और मन की जकड़न को दूर करते हुए, सुखी जीवन का आरंभ आज और अभी से करें।

दैनिक भास्‍कर नोएडा, यूपी एडीशन में वसंत पर्व के दिन पृष्‍ठ 6 पर प्रकाशित हुआ है ।

जनवरी 19, 2012

यूपी का राजनीतिक संकट

भारत का हृदय क्षेत्र कहे जाने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा-2012 का बिगुल बज चुका है। सभी पर्टियां मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तहर के हथकंडों का इस्तेमाल कर रही हैं, चाहें वह प्रदेश का चार हिस्सों में बंटने की घोषणा हो या अल्पसंख्यक आरक्षण की घोषण। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश को अब तक 8 प्रधानमंत्री देने वाला राज्य उत्तर प्रदेश गहरे राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है। यहां की जनता के पास विकल्प ही नहीं है कि वह किसे जननेता बनाये।
          सभी राजनीतिक पर्टियां जानती हैं कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश भारत की राजनीति में अहम भूमिका अदा करेगा। इसलिए चाहें वह कोई भी पार्टी हो पूरी ताकत से इस चुनाव समर में जोर आजमाइश कर रही है। तृणमूल कांग्रेस की केंद्र में कांग्रेस से तकरार, बाबू सिंह कुशवाहा विवाद और राहुल गंाधी और मुख्यमंत्री मायावती की तू-तू, मैं-मैं इसी का नतीजा है। इसके इतर बिडंबना यह है कि इन पर्टियों की स्थिति एजेंडे को लेकर अभी तक साफ नहीं है। भाजपा जैसी पार्टी ने अभी तक अपने मुखिया को लेकर संस्पेंस बरकरार रखा है। शायद उसे डर है कि कहीं पार्टी के अंदर चल रही उठापटक उनकी लुटिया डुबो दे। बसपा की पिछले चुनाव में प्रयोग की गई सोशल इंजीनियरिंग फेल होती नज़र आ रही है। जहां सपा के मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के सहारे वोटरों को लुभा रहे हैं वहीं कांग्रेस राहुल को हाथियार बनाकर युवा वोटरों को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। अगर गौर करें तो पिछला विधानसभा चुनाव में बसपा शायद इसलिए सत्ता में आयी क्योंकि सपा सरकार की नीतियों से आजि़ज आ चुकी जनता के पास कोई विकल्प नहीं था। यह चुनाव मुख्यमंत्री मायावती बनाम मुलायम सिंह यादव था, इस बार ऐसा नहीं है। इस बार कई अन्य पार्टिया के प्रभाव में आ जाने के कारण सभी पर्टियों के समीकरण गड़बड हो गए हैं। इसमें सबसे ज्यादा भूमिका पीस पार्टी की नज़र आ रही। स्वच्छ राजनीति का एजेंडा साथ लेकर चल रही पीस पार्टी अगर मुस्लिम मतदाताओं को अपने पाले में कर लेती है तो सपा का स्थिति डंवाडोल हो सकती है। उधर कांग्रेस और बसपा अन्ना फैक्टर से भी डरे हुए हैं। यदि जातिगत समीकरणों की बात करें तो सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित मतदाता पेंडुलम की भांति इधर-उधर हिलते-डुलते दिखाई दे रहे हैं। यहां पर्टियों के समाने बिडंबना यह है यूपी जनता हर पार्टी के बारे में बाखूबी जानती है क्योंकि आजादी से लेकर आज तक हर बड़ी पार्टी ने यहां शासन किया है। इसके इतर पर्टियां जनता के रूझान को अब तक समझ नहीं पाई हैं। चुनाव आयोग भी सख्ती भी इस चुनाव में अहम भूमिका निभाएगी। जहां 24 घंटे टोल फ्री नबंर 1950 पार्टियों की किरकिरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा वहीं जनता को भी विभिन्न मुद्दों पर प्रतिक्रिया दर्ज कराने का मौका भी मिलेगा।
              इसके इतर उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक सीन और भी है विधानसभा के समाने लगी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत और उनके शिष्य चौधरी चरण सिंह की प्रतिमाएं प्रदेश की समृद्ध राजनीतिक संस्कृति और विरासत की यादों को ताजा करती हैं। जो जनता के लिए जीए और जनता के लिए हंसते-हंसते अलविदा कह गए। उत्तर प्रदेश की परंपरा ऐसी राजनीतिक हस्तियों को पैदा करने की रही है। लेकिन आज स्थिति इसके उलट है प्रदेश की सभी राजनीतिक पर्टियां चाहें वह सत्तासीन बसपा हो, भाजपा, सपा या कांग्रेस हो हर पार्टी अपराधियों की शरणगाह बनती जा रही है। बाबू सिंह कुशवाहा के बसपा से बाहर होने और भाजपा में शामिल हाने को इसी से जोड़कर देखा जा सकता है। हर पार्टी में भ्रष्टाचारियों का बोलबाला है। इसी का नतीजा है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में कई नेता ऐसे हैं जो जेल में होते हुए भी राजनीतिक बिसात बिछा रहे हैं। इस मामले में यूपी का पूर्वांचल इलाका सबसे आगे है। अब मतदाताओं के समाने फिर एक चुनौती खड़ी हो रही है कि वह आखिर चुने किसे। अगर ‘नेशनल इलेक्शन वाॅच’ के आंकड़ों पर भरोसा करें तो प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों ने अब तक 617 सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा की है, जिनमें कम से कम 77 उम्मीदवारों के खिलाफ, हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, बलात्कार और डकैती जैसे संगीन आरोप हैं। देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश की अपराधी और भ्रष्टाचार की गुलामी जकड़ी है। इस प्रदेश का हाल यह है कि यदि यहां कोई पहली बार विधायक बनता है तो वह केवल अपनी और अपने करीबियों की जेबें भरता है और बैंक बैलेंस बढ़ता है।
सत्य यही है कि देश भर को जननेता देना वाला यूपी मूलरूप से आज खुद ही जननेता ने होने की समस्या से जूझ रहा। अब देखने वाली बात यह होगी कि दिग्गज राजनीतिक पर्टियां किस तरह यहां की जनता को लुभाती हैं और सत्ता की कुर्सी पर कब्जा जमाती हैं। वैसे दिनोंदिन जनता की जागरूकता का बढ़ता स्तर और चुनाव आयोग की सख्ती क्या गुल खिलाएगी यह तो आने वाले चुनावी नतीजे ही बताएंगें।
यह लेख दैनिक भास्‍कर नोएडा के पृष्‍ठ 6 पर 17 जनवरी को प्रकाशित हुआ है।

जनवरी 08, 2012

मूर्तियों की माया पर पर्दा


चुनाव आयोग ने यूपी के आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर प्रदेश में राज्य की मुख्यमंत्री मायावती और उनके चुनाव निशान हाथी की मुर्तियों पर पर्दा डालने की बात की है। मुख्य चुनाव आयुक्त का मानना है कि इन मुर्तियों के खुले रहने से राजनीतिक संदेश जाता है इसलिए इनको ढका जाना चाहिए। क्योंकि हाथी बीएसपी के प्रचार का तरीका है और मायावती इसकी सुप्रीमो। इस पर बसपा बुरी तरह आक्रोशित है। उनका कहना है कि चुनाव आयोग का यह निर्णय तर्कसंगत नहीं है। आयोग के इस निर्णय पर बसपा ने कई सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है देश में कई जगह हाथियों की मुर्तियां या तो दरवाजों पर लगी हैं या लोगों ने अपने घरों की शोभा बढ़ाने के लिए लगा रखीं है। यहां तक कि राष्ट्रपति भवन और संसद में भी हाथी लगे हैं। क्या उनको भी ढका जाएगा इसके अलावा बसपा ने यह भी कहा कि प्रदेश में साइकिल को चलने से बंद किया जाए, तलाबों में खिलाने वाले कमल के फूलों को ढका जाए। कांग्रेस पर निशाना सधाते हुए कहा कि देश की समस्त जनता को हाथ ढकने का आदेश दिया जाए। क्योंकि यह सब भी तो सपा, भाजपा और कांग्रेस के चुनाव निशाना हैं। इसके अलावा तर्क दिए गए कि चैराहों पर नेताओं की मुर्तियां है उनका क्या होगा? बसपा का मानना है कि यह कांग्रेस की चाल है और वह उनका हौसला कम करना चाहती है।
जिस मूर्तियों की माया को बसाने के लिए बसपा के दिग्गजों ने सारे नियमों को ढेंगा दिख दिया हो  यूपी की जनता का लगभग 700 करोड़ रूपया लगा दिया है और मौका आते ही उस पर पर्दा डलाने की बात की जाने लगे तो बसपा का यह आक्रोश लाजिमी है। पार्क और मूर्तियां बनाने का यह खेल जब से बसपा की सरकार आई तभी से चल रहा है। इन मूर्तियों को स्थापित करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय की नोटिस की अवहेलना की जाती है और तर्क दिया जाता है कि राजधानी के पास एक सेंटर बनाया जा रहा है जो सामाजिक परिवर्तन लाने वालों के प्रति लोगों की आस्था का केंद्र बने। अब सवाल यह उठता है कि क्या केवल भारत में सामाजिक परिवर्तन लाने में कबीरदास, संत रविदास, संत घासीदास, बिरसा मुंडा, नारायण गुरू, महात्मा ज्योतिबा फुले, शाहूजी महाराज, गौतम बुद्ध, बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम और मुख्यमंत्री मायावती का ही योगदान रहा है? भारतीय राजनीति की यह बिडंबना है कि यहां मूर्तियों लगाकर, विश्‍वविद्यालयों और जिलों के नाम बदलकर अपनी राजनीतिक धरोहर को संजोने के प्रयास किए जाते हैं।

जनवरी 02, 2012

स्वागत नूतन वर्ष तुम्हारा

नूतन वर्ष के स्वर्णिम प्रभात तुम्हारा स्वागत। अभिनंदन। वंदन। हम सब बिछाए हैं पलकें तुम्हारे आगमन की प्रतीक्षा में। इस अति संुदर बेला में दिल से निकलने वाले विचारों की तरणी, अपनी कलकल ध्वनि के माध्यम से कुछ कहने की उत्सुकता लिए तुम्हारा इंतजार कर रही है। वह कह रही है कि आओ कुछ पल के लिए मेरे पास सुनो मेरे अंतस की वाणी को...।
हे नवल वर्ष तुम्हारे स्वागत को चारों ओर हर्ष है, उत्साह है, कहीं शोर है तो कहीं खुद में गुनगुनाता संगीत। वहीं किसी अंधियारे में किसानों की आत्महत्या के बाद उनके परिवारीजनों की चीखों का साम्राज्य। इसके साथ ही किसी अजन्मे मासूम की असमय मौत की खामोशी। यही चीखें और खामोशी तुमसे कुछ कहना चाहती है। इस संसार में लाखों दिल ऐसे हैं जिनकी धड़कनें असमय ही शांत हो जाती हैं। एक किसान कर्ज के बोझ और परिवारिक जिम्मेदारी की चक्की में पिसकर जिंदगी से हार जाता है। वह किसान जो हमें अन्न देता है, हमारे खाने के साजोसमान जुटाता है, जब मौत का आलिंगन करने को रस्सी के फंदे पर झूल रहा होता है, तब उसे बचने या उसकी सहयता करने वाला कोई नहीं होता। मौत से एकाकार हुए इन किसानों के बिलखते मां-बाप, उनकी पत्नियों और उनके बच्चों की चीत्कारें कहना चाहती हैं तुमसे, कि हे नूतन सविता देवता! किसानों को इतना सक्षम बना कि मौत भी इनकी अनुमति मांगकर ही इनको अपने साये समेटे।
वहीं मां की बेवशी और तथाकथित सामाजिक लोगों की निर्दयता के कारण एक फूल खिलाने से पहले ही कुचल दिया जाता है। वह चीखता है, चिल्लाता है पर उसकी चीखें सुनने वाला कोई नहीं होता। वह अजन्मा गर पैदा होता तो शायद अपने परिवार, समाज और राष्ट्र का कर्णधार होता। ऐसे न जाने कितने शिशु प्रतिवर्ष मौत की नींद सुला दिए जाते हैं। इसलिए हे देव! तुम ही दे सकते हो भविष्य की माताओं को वह सक्षमता जिसके सहारे वे अपनी संतान को इस गगन के नीचे आने की अनुमति दें और उस मासूम की मुस्कान से उनका आंचल ही नहीं सम्पूर्ण धरा ही सुंगध से भर जाए।
एक मासूम जब खिलखिलाता है तो वह परमसत्ता का सबसे प्यारा वरदान होता है। इन्हीं मुस्कारते मासूमों के नाम कर दिया हम सबने अपना एक दिन, क्योंकि इस दिन हम उन्हें जानने का एक अनर्थक प्रयास करते हैं। लेकिन बाल मजदूरी, बाल तस्करी और निठारी कांडों के बढ़ते आंकडें कुछ ओर ही कहानी कहते हैं। इस समय बेमानी हो जाते है शिक्षा के अधिकार के आंकड़ें, जो हमें कुछ न कुछ तो सोचने को मजबूर करते है लेकिन यह सोच भी शाम के बढ़ते अंधेरे के साथ समाप्त हो जाती है। अगले दिन हम फिर से व्यस्त हो जाते हैं अपने आप में। जबकि सत्यता यह है कि इन बाल मजदूरों का भी हक बनता है कि वह स्कूल जाएं, पढ़ें-लिखें और अपने सपनों के माध्यम से इस विश्व वसंुधरा के सृजन का कार्य करें। हे नूतन गान! तुम्हें ही गाना होगा कोई ऐसा गीत, जो इन मासूमों के सपनों को पूरा सके।
    हे नूतन सुबह की स्वर्णिम रश्मियों! इसके इतर एक ओर भी कहानी है। जिन युवाओं और किशोरों के कंधों पर हमारे परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व का भार है वह उलझ गया है। वह दिशाहीनता की उस खाईं की ओर बढ़ रहा है जिसमें गिरने के बाद वापस आना मुश्किल है। नशे, अपराध, व्यभिचार में लिप्त इन युवाओं को देखकर लगता है कि भौतिकता की आंधी ने इनके सारे संस्कारों और सदाचरण को भस्म कर दिया है। इंटरनेट, सोशल साइट्स का बढ़ता उपयोग इनके लिए घातक सिद्ध हो रहा है। ज्ञान के अथाह सागर में डुबकी लगाने वाले यह युवा आत्मज्ञान से दूर होते जा रह हैं। इनकी अपनी एक दुनिया है जहां ये खुद को राजा समझते हैं लेकिन ये वह राजा है जिनके पास अपना कुछ न है, इन आभासिक दुनिया के सिवा। प्रतिस्पर्धा के दौर में यह सब कुछ जल्द पा लेना चाहते हैं, इसके लिए इन्हें कोई भी राह क्यों न अख्तियार करनी पड़े। अपने लक्ष्य और पथ से भटकते ये युवा निरंतर काल के गाल मंे समाने की तैयारी कर रहे हैं। इसलिए तुमसे करवद्ध निवेदन इन भटकते युवाओं को सद्विचारों और वैचारिक शक्ति का आलोक प्रदान करो।
    हम अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए सबकुछ दांव पर लगा बैठते हैं। परिवार, समाज और नौकरी के अंर्तद्वंदों के बीच फंसकर हमारी जिंदगी यूं ही गुजर जाती है। यही है आज के इस युग के मानव की कहानी। हम कभी अपने लिए समय नहीं दे पाते हैं लेकिन जब बुढ़ापा आता है तब विचार उठते हैं कि आखिर कुछ ऐसा क्यों नहीं किया जो हमें अंत समय में सुकून दे पाता। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और हमारे बेटे-बहुओं हमें भार समझने लगते हैं और घर से निकल देते हैं। शहरों में कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ रहे वृद्धाश्रम इसकी कहानी खुद व खुद बयान करते हैं। हमारे समाज का यह बहुत ही कड़वा सच है कि जो मां-बाप हमें  पाल-पोष कर इस काबिल बनाते हैं कि हम समाज में सिर उठा सकें। हम उन्हीं मां-बाप को अपने दस कमरों के घर में भी जगह नहीं दे पाते। हम बचपन में जिनसे प्यार की अपेक्षा तो रखते हैं लेकिन बुढ़ापे के समय उन्हें प्यार नहीं दे पाते। समाज में प्रतिष्ठिता पाने का अभिमान हमें अपनों से दूर ले जाता है। जो बच्चा बचपन में मां-बाप के कपड़े गीला करता था, वह अब उनकी आंखें गीली करते वक्त भी कुछ भी नहीं सोचता। इसलिए हे नवल लालिमा लिए भगवन्! आप ही इन कलिमा युक्त विचारों के अंधियारे को समाप्त कर सकते हो। आज के मानव को आपके दिव्य प्रकाश की महती आवश्यकता है। हे सविता तुम ऐसे प्रकाशित हो कि समाज में फैला ये अन्यायपूर्ण साम्राज्य का तमस जल्द से जल्द नष्ट हो और मां-बाप को बेचारगी की देहरी पर अकेला छोड़ने वाली संतानें उन्हें भी अपना प्यार देने को तत्पर हों।
    हे नवल विहान के सविता की स्वर्णिम रश्मियों! तुम बेटे-बहुओं-बेटियों को यह शिक्षा दो कि आपके आगमन के साथ वह अपने बूढे़ मां-बाप को कुछ देना सीख जाएं। जिससे उनका आशीर्वाद उन्हें मिले। युवाओं को सही राह दिखा दो। बच्चों को आकार देने के लिए साकार सामाज बना दो। बेवश की आग मे जलते लोगों को समर्थता प्रदान करो। बस आपसे यही विनती कि सम्पूर्ण विश्व वसुधा को ऐसा आशीर्वाद दो, जिससे हर प्राणी आपकी स्वर्णिम आभा से गौरवान्वित हा सके। इसलिए हे नवल सविता नववर्ष के हर क्षण को नया रूप देने के लिए हर आंगन में उतरती तुम्हारी लालिमा युक्त किरणों का हार्दिक स्वागत। अभिनंदन। वंदन।
यह लेख दैनिक भास्‍कर नोएडा में 1 जनवरी को विशेष पृष्‍ठों पर प्रकाशित हुआ है।