विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट/जेआरएफ) को पूरी तरह से बहुविकल्पीय कर दिया है। यूजीसी ने इस बदलाव के पीछे तर्क दिया है कि उत्तर पुस्तिकाओं की जांच करने में समय और पैसा अधिक खर्च होता है। यह बदलाव कितना शुभ है या अशुभ यह सोचनीय विषय है।
राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के माध्यम से देश भर के विश्वविद्यालय को योग्य शिक्षक देने का दायित्व यूजीसी के पास है। यूजीसी साल में दो बार दिसम्बर और जून में यह परीक्षा आयोजित करती है। इसमें सफल हुए अभ्यार्थियों को देश में विभिन्न विश्वविद्यालयों, डिग्री काॅलेजों में अपनी अध्यापन क्षमता दिखाने का मौका मिलता है। अभी तक इस परीक्षा को पास करने के लिए दो बहुविकल्पीय तथा एक पेपर की विवरणात्मक हुआ करता था। इस विवरणात्मक प्रश्न पत्र के माध्यम से अभ्यार्थियों के विषयगत ज्ञान और लेखन दक्षता को परखा जाता रहा है। परंतु इस परीक्षा के तीनों प्रश्न पत्र अब बहुविकल्पीय होंगे। इसमें प्रथम प्रश्न पत्र में 60 प्रश्न पूछे जाएंगे, जिसमें 50*2=100 अंक के प्रश्न अभ्यर्थी को करने होंगे, द्वितीय प्रश्न पत्र में 50*2=100 तथा तृतीय प्रश्न पत्र में 75*2=150 प्रश्न पूछे जाएंगे। इन दोनों प्रश्न पत्रों के सभी प्रश्न का उत्तर अभ्यर्थियों को देना होगा। किसी भी प्रश्न पत्र के लिए कोई नकारात्मक अंक प्रणाली नहीं रखी गई है। इसके साथ परीक्षा को पास करने के लिए भी न्यूनतम अंक निर्धारित कर दिए गए हैं। जिसके तहत सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों को प्रथम तथा द्वितीय पेपर में 40-40 प्रतिशत तथा तृतीय प्रश्न पत्र में 50 प्रतिशत यानि 75 अंक लाने होंगे। इसी प्रकार ओबीसी के अभ्यथियों को प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय प्रश्न पत्र में क्रमशः 35-35, 45 प्रतिशत, अनुसूचित जाति/जनजाति/शरीरिक रूप से विकलांग/विजुअली हैंडीकेप अभ्यर्थियों को क्रमशः 35-35 तथा 40 प्रतिशत अंक लाने होंगे। इसके अलावा अभ्यर्थी अपने उत्तरों की कार्बन काॅपी अपने साथ ले जा सकेंगे।
इस बदलाव से जायज है कि नेट परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों में खुशी की लहर दौड़ गई होगी। साथ ही यूजीसी को भी कम समय और पैसा खर्च करना होगा। अब सवाल यह उठता है कि क्या इस प्रणाली के माध्यम से हम विश्वविद्यालयों को अच्छे अध्यापक प्रदान की पाएंगेघ् अभी तक तृतीय प्रश्न पत्र में यूजीसी अभ्यर्थियों की खूब माथापच्ची करवाती थी, जिससे उनकी सारी क्षमताओं का आंकलन होता रहा है। परंतु क्या अब वह उनकी क्षमताओं का आंकलन बहुविकल्पीय प्रश्न पत्रों के माध्यम से कर पाएंगेंघ् किसी अध्यापक के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक होती है उसकी विषयगत दक्षता। दक्षता से अभिप्राय है उसकी लेखन, अध्ययन और अध्यापन क्षमता। इसमें लेखन सबसे अधिक महत्वपूर्ण पक्ष है। यदि कोई अध्यापक अपने विषय पर लिख नहीं सकता तो इसका मतलब है वह अपने विषय को न तो ठीक से पढ़ा सकता है और ना ही निभा सकता है। अब जो बदलाव हुए हैं उसमें अभ्यर्थी की विषयगत दक्षता का परीक्षण किस तरह किया जाएगाघ्
यूजीसी ने जो बदलाव किए वे सहूलियतों के लिहाज से तो ठीक है चाहें वह अभ्यर्थियों की हों या यूजीसी की। इसके माध्यम से हम देश भर के विश्वविद्यालयों में खाली पड़े अध्यापकों के पदों को भर भी सकते हैं। लेकिन इन बदलावों के बाद नेट/जेआरएफ की परीक्षा पास करके आए अभ्यर्थियों के पास क्या इतना ज्ञान होगा कि वह छात्रों और अपने विषय से न्याय कर पाए। वैसे भी पहले से ही हमारी शिक्षा प्रणाली में कई तरह की कमियां है। जिनमें सुधार की पहले से ही आवश्यकता है। ऐसा न हो कि यह बदलाव भी भविष्य में कमी के रूप में समाने आए। इस पर पुर्नविचार की आवश्यकता है।
यह लेख दैनिक भास्कर 6 फरवरी को नोएडा-यूपी एडीशन के पृष्ठ संख्या 7 पर प्रकाशित हुआ है।
राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा के माध्यम से देश भर के विश्वविद्यालय को योग्य शिक्षक देने का दायित्व यूजीसी के पास है। यूजीसी साल में दो बार दिसम्बर और जून में यह परीक्षा आयोजित करती है। इसमें सफल हुए अभ्यार्थियों को देश में विभिन्न विश्वविद्यालयों, डिग्री काॅलेजों में अपनी अध्यापन क्षमता दिखाने का मौका मिलता है। अभी तक इस परीक्षा को पास करने के लिए दो बहुविकल्पीय तथा एक पेपर की विवरणात्मक हुआ करता था। इस विवरणात्मक प्रश्न पत्र के माध्यम से अभ्यार्थियों के विषयगत ज्ञान और लेखन दक्षता को परखा जाता रहा है। परंतु इस परीक्षा के तीनों प्रश्न पत्र अब बहुविकल्पीय होंगे। इसमें प्रथम प्रश्न पत्र में 60 प्रश्न पूछे जाएंगे, जिसमें 50*2=100 अंक के प्रश्न अभ्यर्थी को करने होंगे, द्वितीय प्रश्न पत्र में 50*2=100 तथा तृतीय प्रश्न पत्र में 75*2=150 प्रश्न पूछे जाएंगे। इन दोनों प्रश्न पत्रों के सभी प्रश्न का उत्तर अभ्यर्थियों को देना होगा। किसी भी प्रश्न पत्र के लिए कोई नकारात्मक अंक प्रणाली नहीं रखी गई है। इसके साथ परीक्षा को पास करने के लिए भी न्यूनतम अंक निर्धारित कर दिए गए हैं। जिसके तहत सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों को प्रथम तथा द्वितीय पेपर में 40-40 प्रतिशत तथा तृतीय प्रश्न पत्र में 50 प्रतिशत यानि 75 अंक लाने होंगे। इसी प्रकार ओबीसी के अभ्यथियों को प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय प्रश्न पत्र में क्रमशः 35-35, 45 प्रतिशत, अनुसूचित जाति/जनजाति/शरीरिक रूप से विकलांग/विजुअली हैंडीकेप अभ्यर्थियों को क्रमशः 35-35 तथा 40 प्रतिशत अंक लाने होंगे। इसके अलावा अभ्यर्थी अपने उत्तरों की कार्बन काॅपी अपने साथ ले जा सकेंगे।
इस बदलाव से जायज है कि नेट परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों में खुशी की लहर दौड़ गई होगी। साथ ही यूजीसी को भी कम समय और पैसा खर्च करना होगा। अब सवाल यह उठता है कि क्या इस प्रणाली के माध्यम से हम विश्वविद्यालयों को अच्छे अध्यापक प्रदान की पाएंगेघ् अभी तक तृतीय प्रश्न पत्र में यूजीसी अभ्यर्थियों की खूब माथापच्ची करवाती थी, जिससे उनकी सारी क्षमताओं का आंकलन होता रहा है। परंतु क्या अब वह उनकी क्षमताओं का आंकलन बहुविकल्पीय प्रश्न पत्रों के माध्यम से कर पाएंगेंघ् किसी अध्यापक के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक होती है उसकी विषयगत दक्षता। दक्षता से अभिप्राय है उसकी लेखन, अध्ययन और अध्यापन क्षमता। इसमें लेखन सबसे अधिक महत्वपूर्ण पक्ष है। यदि कोई अध्यापक अपने विषय पर लिख नहीं सकता तो इसका मतलब है वह अपने विषय को न तो ठीक से पढ़ा सकता है और ना ही निभा सकता है। अब जो बदलाव हुए हैं उसमें अभ्यर्थी की विषयगत दक्षता का परीक्षण किस तरह किया जाएगाघ्
यूजीसी ने जो बदलाव किए वे सहूलियतों के लिहाज से तो ठीक है चाहें वह अभ्यर्थियों की हों या यूजीसी की। इसके माध्यम से हम देश भर के विश्वविद्यालयों में खाली पड़े अध्यापकों के पदों को भर भी सकते हैं। लेकिन इन बदलावों के बाद नेट/जेआरएफ की परीक्षा पास करके आए अभ्यर्थियों के पास क्या इतना ज्ञान होगा कि वह छात्रों और अपने विषय से न्याय कर पाए। वैसे भी पहले से ही हमारी शिक्षा प्रणाली में कई तरह की कमियां है। जिनमें सुधार की पहले से ही आवश्यकता है। ऐसा न हो कि यह बदलाव भी भविष्य में कमी के रूप में समाने आए। इस पर पुर्नविचार की आवश्यकता है।
यह लेख दैनिक भास्कर 6 फरवरी को नोएडा-यूपी एडीशन के पृष्ठ संख्या 7 पर प्रकाशित हुआ है।
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