- मणिपुर और गोवा को छोड़ दें और हाल के सालों में सम्पन्न हुए सभी चुनावों को गौर से देखें तो पायेंगे कि मतदाता अब पूर्ण बहुमत की सरकार चाहता है। वह नहीं चाहता कि मध्यावधि चुनाव हों। लोकसभा चुनाव के बाद यह दिल्ली, बिहार, असम आदि सभी जगह यही दिखा। पार्टी धुरधरों और राजनीतिक पंडितों को इसका भी आंकलन करना चाहिए।
- हर बात को पढ़—पढ़कर बोलने वाला नेता जनता से जुड़ नहीं सकता। मायावती का फेल होना यह बताता है, कि विगत वर्षों में उन्होंने किस तरह की राजनीति की है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कोई सीट न मिलना और 2017 के विधानसभा में केवल 19 सीटें मिलना यह बताता है कि उनके लोगों का उन पर भरोसा उठा है। खुद के लोगों से दूर होकर, मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने की मायावती की इंजीनियरिंग फेल हो गई। हालांकि इसका फायदा बीजेपी को मिला, उन्होंने मतदाताओं को बाखूबी बांट दिया और बीजेपी ने 325 का जादूई आंकड़ा छू लिया। अब तो बीएसपी इस स्थिति में पहुंच गई है कि मायावती को अपने दम पर राज्यसभा पहुंचने में भी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। यह सच है कि मतदाताओं को मोह बीएसपी यानि मायावती से भंग हुआ है। एक गलत काम और किया उन्होंने, बीएसपी में कोई नेता तैयार नहीं किया। तो मतदाता भी क्या सोचे कि यह मायावती का आखिरी चुनाव था। हालांकि वोट प्रतिशत के हिसाब से वह 22 फीसदी वोट लेने में सफल हुई हैं। परंतु इस आधार पर उनके भविष्य की खत्म होती संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।
- यूपी में बीजेपी सरकार से उम्मीदें.....
- शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन हो। खासकर स्कूली शिक्षा के स्तर पर अमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
- बुंदेलखंड के सूखे और पूर्वांचल के बीमारियों से प्रभावित इलाकों को प्राथमिकता पर रखा जाये।
- परिवहन व्यवस्था दुरस्त हो। परिवहन के नियमों को सख्ती से लागू किया जाये।
- रोजगार के अवसरों का सृजन किया जाये।
- भूमाफिया, माफिया, अपराधियों के मामले त्वरित न्याय की व्यवस्था की जाये।
- जातिगत, क्षेत्रगत, सम्प्रदायगत राजनीति से इतर समग्र विकास के प्रवाह का विस्तार किया जाये।
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