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यह चुनाव कई मायनों में बड़ा
होगा। आम आदमी पार्टी के लिए यह पांच साल किए गए कामों का परिणाम होगा वहीं बीजेपी
के लिए नागरिकता संसोधन कानून में बदलाव के बाद के सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट, क्योंकि
इस बदलाव के बाद इसका विरोध दिल्ली में ही शुरू हुआ। जामिया के विद्यार्थिंयों के सहारे
इसे विपक्षी पर्टिंयों ने इस विरोध को खूब भूनाने का प्रयास किया। यहीं से पूरे देश
में विरोध की आग फैली जो अबतलक जारी है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेंस के नेताओं पर
दिल्ली में हिंसा भड़काने का आरोप भी इस दौरान लगा। दिल्ली
के उप—मुख्यमंत्री और मौजूदा शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया सोशल मीडिया पर पुलिस पर आग
लगाने के झूठे आरोप लगाते भी नज़र आये। चुनाव
घोषणा से ठीक एक दिन पहले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुआ लेफ्ट और राइट बवाल
भी इस चुनाव में मुद्दा होने वाला है।
पिछली बार की तरह भ्रष्टाचार
इस बार आम आदमी पार्टी के लिए मुद्दा नहीं दिखता। पार्टी विकास के नारे के साथ चुनाव
मैदान में है। शिक्षा और स्वास्थ्य के दिशा में किए गए प्रयासों के सहारे मौजूदा मुख्यमंत्री
केजरीवाल की पार्टी अक्रामकता का रूख त्याग करते हुए, अपनी छवि को ठीक करने का प्रयास
कर रही है। उनके प्रवक्ता भी टीवी चैनलों में संतुलित नज़र आ रहे हैं। हालांकि सवाल
कई हैं प्रवक्ताओं को जिनका जबाव देते नहीं बनता।
गृहमंत्री अमित शाह के हालिया
बयान के बाद एक बार फिर माना जा रहा है कि बीजेपी का एक ही
सहारा हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रवाद। ये बीजेपी के लिए
कैसा साबित होगा ये तो चुनाव परिणाम की बतायेंगे। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में बीजेपी
की स्थिति ठीक नज़र नहीं आ रही। मुख्यमंत्री पद के लिए कोई भी चेहरा न दे पाने के कारण
और सही समय पर निर्णायक स्थिति में न पहुंच पाने के कारण पिछले विधानसभी चुनावों में
बीजेपी का हश्र क्या हुआ था यह लोग बाखूबी जानते हैं। इस बार भी परिस्थितियां पिछले
चुनावों जैसी ही दिख रही है।
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