जनवरी 15, 2020

मां मुझे भक्ति दो, विवेक दो, ज्ञान दो, वैराग्य दो

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विवेकानंद का अर्थ है जिसने विवेक की जागृति कर उसके फलस्वरूप होने वाले आनंद की प्रत्यक्ष अनुभूति की हो। जिसने ज्ञानयोग की उस उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर लिया हो, जिसके बाद कुछ शेष नहीं रहता। भौतिक मार्ग को साधने के बाद ही अंतरंग की यात्रा संभव है। भौतिक जगत की साधना के लिए पतंजलि यम, नियम और आसन बताते हैं। विवेकानंद अगर कहते हैं कि आध्यात्मिक मार्ग से पहले जरूरत है फुटबॉल खेलने की इसका अर्थ है खिलाड़ी की तरह नियम और संयम का पाठ पढ़ो। शरीरिक दुर्बलता, मानसिक दुर्बलता को त्यागो। यह आध्यात्मिक यात्रा के लिए आवश्यक है। विवेकानंद क्यों ऐसा कह सकते हैं क्योंकि उन्होने खुद यह यात्रा तय की है।

बहिरंग के दु:खों से थका—हारा युवा नरेन्द्र जब रामकृष्ण परमहंस के पास आता है तो वो वह अपने दु:खों के निवारण के लिए परमहंस से कहता है। मां तो आपकी सुनती है, उससे कहो कि मेरे दु:खों को दूर करे। ठाकुर कहते हैं तू खुद क्यो नहीं कहता मां से। मंगलवार का दिन था, ठाकुर के कहे अनुसार रात को मां के मंदिर में जाना था। उससे पूर्व ही मन भक्ति के भाव से सराबोर होने लगा। बहिरंग के साधक की अंतरंग यात्रा जब शुरू होती है तो शायद यही अनुभव होता होगा जो उस समय नरेन्द्र को हो रहे थे। जैसे ही नरेन्द्र मंदिर पहुंचे सब भूलकर बोले 'मां, मुझे भक्ति दो, विवेक दो, ज्ञान दो, वैराग्य दो। ऐसा कई बार हुआ। यहां से नरेन्द्र के विवेकानंद बनने की प्रक्रिया आरंभ होती है। एक युवा जिसे मुर्तियों और प्रतीकों की पूजा से घृणा थी उसका ईश्वर के मातृत्व के प्रति श्रद्धा भाव प्रगाढ़ हो गया। विवेकानंद के समझने के लिए भक्ति, विवेक, ज्ञान और वैराग्य की अवस्थाओं में उतरना होगा। जिसने ये सब पा लिया वही आत्मवत् सर्वभूतेषु का जयकार कर सकता है।

कोई भी 'नरेन्द्र' यूं ही विवेकानंद नहीं बन जाता। उसके लिए भक्ति भाव से सराबोर होना होता है। ईश्वर के प्रति विश्वास को सुदृढ़ करना होता है। श्रीमद् भगवत् गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्। ज्ञान की प्राप्ति श्रद्धावान के लिए सरल है। निश्चल भाव ईश्वर के प्रति समर्पण ही श्रद्धा है। युवा नरेन्द्र भी इसी भाव के साथ मां काली के मंदिर में प्रवेश करता है और उसके विवेकानंद बनने की यात्रा आरंभ होती है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन से कहते हैं सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥ अर्थात् सभी कर्मों को मुझ में लगा, मुझ में में विश्वास कर। मेरी शरण में आ। मैं तुझे मुक्त कर दूंगा। नरेन्द्र से विवेकानंद बनने का मूल मंत्र भी यही।

जनवरी 07, 2020

दिल्ली का दंगल, किसका होगा मंगल?

Source: https://economictimes.indiatimes.com/img/73131081/Master.jpg
सोमवार को चुनाव आयोग ने दिल्ली के दंगल का तिथियां निर्धारित कर दीं। 8 फरवरी को दिल्ली में 70 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जायेंगे। 11 फरवरी को चुनाव परिणाम आना है, जोकि मंगलवार है। ऐसे में ये चुनावी दंगल किसका मंगल करेगा ये देखने वाली बात होगी। कुछ चैनलों के पोल ने आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत की सरकार दे दी है। ये आप के लिए राहत की बात है, वहीं बाकी पार्टियों के लिए एक माह बचे समय में ठीकठाक परिणाम देने का  बोझ। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों और दिल्ली से सटे राज्य, हरियाणा के विधानसभा चुनावों की बात करें तो आम आदमी पार्टी की स्थिति ठीक नहीं रही है।
यह चुनाव कई मायनों में बड़ा होगा। आम आदमी पार्टी के लिए यह पांच साल किए गए कामों का परिणाम होगा वहीं बीजेपी के लिए नागरिकता संसोधन कानून में बदलाव के बाद के सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट, क्योंकि इस बदलाव के बाद इसका विरोध दिल्ली में ही शुरू हुआ। जामिया के विद्यार्थिंयों के सहारे इसे विपक्षी पर्टिंयों ने इस विरोध को खूब भूनाने का प्रयास किया। यहीं से पूरे देश में विरोध की आग फैली जो अबतलक जारी है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेंस के नेताओं पर दिल्ली में हिंसा भड़काने का आरोप भी इस दौरान लगा। दिल्ली के उप—मुख्यमंत्री और मौजूदा शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया सोशल मीडिया पर पुलिस पर आग लगाने के झूठे आरोप लगाते भी नज़र आये। चुनाव घोषणा से ठीक एक दिन पहले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में हुआ लेफ्ट और राइट बवाल भी इस चुनाव में मुद्दा होने वाला है।
पिछली बार की तरह भ्रष्टाचार इस बार आम आदमी पार्टी के लिए मुद्दा नहीं दिखता। पार्टी विकास के नारे के साथ चुनाव मैदान में है। शिक्षा और स्वास्थ्य के दिशा में किए गए प्रयासों के सहारे मौजूदा मुख्यमंत्री केजरीवाल की पार्टी अक्रामकता का रूख त्याग करते हुए, अपनी छवि को ठीक करने का प्रयास कर रही है। उनके प्रवक्ता भी टीवी चैनलों में संतुलित नज़र आ रहे हैं। हालांकि सवाल कई हैं प्रवक्ताओं को जिनका जबाव देते नहीं बनता।
गृहमंत्री अमित शाह के हालिया बयान के बाद एक बार फिर माना जा रहा है कि बीजेपी का एक ही सहारा हैं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रवाद। ये बीजेपी के लिए कैसा साबित होगा ये तो चुनाव परिणाम की बतायेंगे। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में बीजेपी की स्थिति ठीक नज़र नहीं आ रही। मुख्यमंत्री पद के लिए कोई भी चेहरा न दे पाने के कारण और सही समय पर निर्णायक स्थिति में न पहुंच पाने के कारण पिछले विधानसभी चुनावों में बीजेपी का हश्र क्या हुआ था यह लोग बाखूबी जानते हैं। इस बार भी परिस्थितियां पिछले चुनावों जैसी ही दिख रही है।

जनवरी 06, 2020

छात्रों के सहारे राजनीति तलाशती पर्टियां


जेएनयू में कल जो हुआ वह निंदनीय है। नकाबपोश गुन्डों ने एबीवीपी और वामपंथी विचारधारा के समर्थक विद्यार्थियों को पीट—पीटकर घायल कर दिया। उसके बाद शुरू हुयी पार्टियों की राजनीति और मीडिया का खेल। आजकल मीडिया खेल खेलने लगा है। दोनों ओर के मीडिया चैनलों एक दूसरे को विक्टिम की तरह पेश करना शुरू किया। लेकिन सबसे उम्दा मीडिया सोशल मीडिया ने उनका खेल बिगाड़ दिया जो मीडिया चैनल एबीवीपी और लेफ्ट के लिए बैटिंग कर रहे हैं अंत में उन्हें खबरों मं नकाबपोश लिखना पड़ा। ये नकाबपोश कौन थे अभी तक किसी को नहीं पता। दोनों ओर में व्हाटस ऐप में स्क्रीनशॉट वायरल हो चुके हैं। इनकी पड़ताल जारी है, और धीरे—धीरे एक और क्रांति का पटाक्षेप होता दिख रहा है। ऐसे में जो राजनीतिक पार्टिंयां छात्रों के सहारे जमीन तलाशने में लगी थीं वो एक बार ओर मुंह की खाती दिख रही हैं।
जेएनयू का आंदोलन फीस और हॉस्टल नियमों में बदलाव के खिलाफ पिछले तीन महीने से चल रहा है, पहले कक्षाएं नहीं चलने दी गईं। फिर परीक्षाओं का बहीष्कार किया और अब नामांकन प्रक्रिया को बाधित करने का दौर जारी था। फिर भी कई विद्यार्थियों ने नए सत्र के लिए नामांकन किया। तीन जनवरी को नामांकन प्रक्रिया को बाधित करने के लिए सर्वर रूम को बंद करने वाले छात्रों में भी नकाबपोश शामिल थे। इनका वीडियो भी सोशल मीडिया पर तैर रहा है। इसमें कौन लोग हैं, वो आसानी से पहचाने जा सकते हैं। इससे नाराज होकर आंदोलन कर रहे और नामांकन करने वाले छात्रों के बीच मारपीट हुई। इसी बीच घटना में नकाबपोशों के आगमन होता है और फिर शुरू होती है राजनीति।
इस जड़ तलाशने की कोशिश करते हैं। ये कोई नया नहीं है अभी हाल ही में नागरिकता संसोधन विधेयक के समय भी जामिया और एएमयू के छात्रों को मोहरे की तरह उपयोग किया गया। जाधवपुर की खबरों से भी आप लोग वाकिफ होंगे। वहां राज्यपाल तक को घुसने नहीं दिया जाता। पूरे देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्रों के बीच छुटपुट झडपें आम बात है। लेकिन जेएनयू है, दिल्ली में है, मीडिया पास है तो पक्ष क्या विपक्ष और विपक्ष क्या दोनों अपने अपने लोगों के साथ आसानी से खड़े हो जाते हैं और मीडिया को मुद्दा मिल जाता है, अपनी टीआरपी को रंगने का। असल में मेरी समझ यह कहती है कि अधिकतर विपक्षी पर्टियों की जमीन खिसक रही है। नागरिकता संसोधन विधेयक पर प्रारंभ में तो सहयोग मिला, वह भी अब ढलान की ओर है। ऐसे में राजनीति के सबसे आसान मोहरे, विद्यार्थियों को भड़काओ, उनके आंदोलनों में खुद की राजनीति घुसाओ और आग लगी रहने दो। जब तक दिल्ली चुनाव नहीं हो जाता।
ऐसे मौकों पर केन्द्र, राज्य सरकार और पुलिस की भूमिका अहम हो जाती है। तीनों को चाहिए की राजनीति छोड़कर इस घटना की निष्पक्ष जांच करायें और जो भी लोग इस विभत्सकृत्य में शामिल हैं, चाहें वो किसी गुट के हों, उन्हें मीडिया के सामने लाकर, पूरे देश को बतायें कि ये लोग यहां पढ़ने नहीं आते गुंडागर्दी करने आते हैं। लेकिन इसकी उम्मीद भी कम ही दिखती है, जेएनयू में लगे नारों की जांच की फाइल दिल्ली की आप सरकार अब भी दबा के बैठी है जबकि कोर्ट कई बार इस मामले में टिप्पणी कर चुका है। इस नउम्मीदी के दौर में हम केवल ये कर सकते हैं, इसमें शामिल लोगों को जैसे हो सके बेनकाब करें। वैसे वो हो भी रहे हैं और होते भी रहेंगे।